सही,सत्य साथ को सत्संग कहते है। अच्छे स्थान का सेवन अच्छे ,सही आदमी का साथ, सत्ग्रंथ का सेवन आदि सत्संग है जिसके सेवन से अच्छे विचार,अच्छे चिंतन ,सत्प्राप्ति होती है। नवधा भक्ति में पहली भक्ति है सत्संगति या सत्संग। महात्मा तुलसी दास ने कहा है कि बिनु सत्संग विवेक न होई। बिनु हरि कृपा सुलभ नहि सोई।।
अर्थात् हरि कृपा से ही सत्संग की प्राप्ति होती है और सत्संग की प्राप्ति से विवेक ज्ञान होता है। विवेक ज्ञान से ही सत असत अर्थात जड़ और चेतन में भेद ज्ञात होता है।हंस को नीर क्षीर विवेकी कहा गया है क्योंकि हंस मिले हुए दूध और पानी में से दूध को ग्रहण कर लेता है और पानी को छोड़ देता है।सत्संग की महिमा अपार कही गई है। महात्मा तुलसी दास ने ठीक ही लिखा है,
तात स्वर्ग अपवर्ग सुख धरि तुला एक अंग।
तूल न ताहि सकल मिलि कोसुख लव सतसंग।।
अर्थात् तुला के एक ओर रखा स्वर्ग और मुक्ति के सुख तुला के दूसरी तरफ रखे अल्प सत्संग के बराबर नही हो सकते ।
