**परमात्मा को जानने समझने के लिए विवेक की आवश्यकता पड़ती है, जो केवल ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने पर ही जागता है।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                      श्री आर सी सिंह जी 

भौतिक प्रकृति 3 गुणों सतो + रजो + तमोगुण से ही कार्य करती रहती है। इसलिए प्रकृति की 84 लाख योनियाँ सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी होती हैं। मनुष्य से नीचे की सभी योनियों के जीव तमोगुणी प्रधान होते हैं। जैसे पेड़-पौधे, कीड़े- मकोड़े, कीट-पतंगे, जलीय जंतु, पक्षी व पशुओं की यात्रा सहज ही पाप कर्मों/तमोगुणी कर्मों का फल भोगते-भोगते मनुष्य बनने के लिए हर पल अग्रसर हो रही है। अर्थात् संचित कर्मों में 50%+50% पाप-पुण्य होने से पुन: उस जीव को मनुष्य रुपी कर्मयोनि मिल जाती है। दूसरी ओर मनुष्य योनियाँ सतोगुणी प्रधान होती हैं, जहाँ सतोगुणी यानी पुण्य कर्मों का फल भोगा जाता है।

     संसार को पाने के लिए यानि संसारी भोग के पदार्थों को पाने के लिए बुद्धि की आवश्यकता होती है। और इस बुद्धि के विकास के लिए हमें स्कूल कालेज में जाकर पढ़ना लिखना होता है। जिसके लिए मोटी फीस भी देनी पड़ती है। तब हमारी बुद्धि विकसित होती है। जबकि परमात्मा को जानने- समझने के लिए केवल विवेक की आवश्यकता पड़ती है। यह विवेक केवल ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करते रहने से ही जागता है, जहाँ कोई फीस भी नहीं लगती। देखिए, मनुष्य योनि में ही विवेक शक्ति को बढ़ाया जा सकता है, अन्य किसी भी योनि में नहीं।

*ओम् श्री आशुतोषाय नम*

"श्री रमेश जी"

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