सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीजीवन का आनंद लेने के लिए कुछ थोड़े से ही सूत्र हैं । उन्हें जान लेने मात्र से काम नहीं चल सकता। वे अपना चमत्कार तभी दिखाते हैं, जब व्यवहार में उतारा जाए और "गुण, कर्म, स्वभाव" का अंग बना लिया जाए ।
हम "कर्मयोगी" बनें। कर्तव्यपालन को प्रधानता दें। शरीर को भगवान की अमानत समझें और श्रम एवं संयम के सहारे उसी प्रकार बनाए रहें । अच्छे से अच्छे की आशा करें और बुरे से बुरे के लिए तैयार रहें । अपनी प्रसन्नता कर्तव्यपालन के केंद्र से जुड़ी रखें । मालिक किसी के न बनें । माली की तरह अपने संपर्क-क्षेत्र के हर पदार्थ, प्राणी और संबंधी को परिष्कृत करने भर का दृष्टिकोण रखें। उपयोग की आतुरता का खतरा समझें। साधनों का श्रेष्ठतम उपयोग क्या हो सकता है, इसका विचार और प्रयास करते रहें ।
ऐसा कुछ न करें, जिस पर पीछे पश्चाताप करना पड़े । आत्मा धिक्कारे और बाहर से तिरस्कार बरसे। लोभ का आकर्षण, संबंधियों का आग्रह तथा जोखिम का भय इन तीनों का सामना करने का साहस जुटा सकने वाला ही सच्चा शूरवीर है । कर्मयोगी उच्च कोटि के योद्धा होते हैं।जीवन संग्राम में अवांछनीयता के शत्रुओं से पग-पग पर जूझना पड़ता है । ईमानदारी, तत्परता और तन्मयता के साथ जब कर्म किया जाता है और उसकी उत्कृष्टता एवं समग्रता को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया जाता है, तो ऐसे ही सत्कर्म ईश्वर की श्रेष्ठतम उपासना एवं जीवन साधना की अति महत्वपूर्ण अंग बन जाते हैं। जीवन की सार्थकता का प्रथम सूत्र यह कर्मयोग ही है।
*ओम् श्री आशुतोषाय नमः*
"श्री रमेश जी"
