सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                            *अपने आप को जानें*

              श्री आर सी सिंह जी रिटायर्ड एयरफोर्स ऑफिसर

एक बहुत अरबपति महिला ने एक गरीब चित्रकार से अपना चित्र बनवाया,पोर्ट्रेट बनवाया। चित्र बन गया,तो वह अमीर महिला अपना चित्र लेने आयी। वह बहुत खुश थी। चित्रकार से उसने कहा, कि क्या उसका पुरस्कार दूं? चित्कार गरीब आदमी था। गरीब आदमी वासना भी करे तो कितनी बड़ी करे,मांगे भी तो कितना मांगे?

  उसने सोचा मन में कि सौ डालर मांगूं,दो सौ डालर मांगूं,पांच सौ डालर मांगूं। फिर उसकी हिम्मत डिगने लगी। इतना देगी,नहीं देगी! फिर उसने सोचा कि बेहतर यह हो कि इसी पर छोड़ दूं,शायद ज्यादा दे। डर तो लगा मन में कि इस पर छोड़ दूं,पता नहीं दे या न दे, या कहीं कम दे और एक दफा छोड़ दिया तो फिर !!  उसने फिर भी हिम्मत की। उसने कहा - कि आपकी जो मर्जी !! तो उसके हाथ में जो उसका बैग था,पर्स था, उसने कहा - अच्छा !! तो यह पर्स तुम रख लो। यह बडा कीमती पर्स है। पर्स तो कीमती था, लेकिन चित्रकार की छाती बैठ गयी कि पर्स को रखकर करूंगा भी क्या? माना कि कीमती है और सुंदर है,पर इससे कुछ आता-जाता नहीं। इससे तो बेहतर था कुछ सौ डालर ही मांग लेते। तो उसने कहा,नहीं-नहीं !! मैं पर्स का क्या करूंगा,आप कोई सौ डालर दे दें।उस महिला ने कहा- तुम्हारी मर्जी !! उसने पर्स खोला,उसमें एक लाख डालर थे, उसने सौ डालर निकाल कर चित्रकार को दे दिये और पर्स लेकर वह चली गयी। सुना है कि चित्रकार अब तक छाती पीट रहा है और रो रहा है–मर गये, मारे गये,अपने से ही मारे गये !! 

आदमी करीब-करीब इसी हालत में है। परमात्मा ने जो दिया है,वह बंद है,छिपा है। और हम मांगे जा रहे हैं–दो-दो पैसे,दो-दो कौड़ी की बात। और वह जीवन की जो संपदा उसने हमें दी है,उस पर्स को हमने खोल कर भी नहीं देखा है। जो मिला है,वह जो आप मांग सकते हैं,उससे अनंत गुना ज्यादा है। लेकिन मांग से फुरसत हो,तो दिखायी पड़े,वह जो मिला है। भिखारी अपने घर आये, तो पता चले कि घर में क्या छिपा है। वह अपना भिक्षापात्र लिये बाजार में ही खड़ा है! वह घर धीरे-धीरे भूल ही जाता है,भिक्षा-पात्र ही हाथ में रह जाता है। इस भिक्षापात्र को लिये हुए भटकते-भटकते जन्मों-जन्मों में भी कुछ मिला नहीं। कुछ मिलेगा भी नहीं।

हर किसीको को जन्म के साथ एक हीरा दिया हुआ है। उसकी पहचान होनी जरूरी है। फिर कोई भिक्षापात्र रखने की जरूरत नही पड़ती।सम्राट हैं आप ... अनहद हैं आप... पहचान लें खुद को।

*ओम् श्री आशुतोषाय नमः*

RC Singh.7897659218.

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