सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

 *बुरे कर्मों से बचने के लिए हमें ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करते रहना चाहिए।*

         श्री आर सी सिंह जी रिटायर्ड एयरफोर्स ऑफिसर

मनुष्य योनि पाकर ही जीव परमात्मा को जानने की जिज्ञासा रख सकता है, अन्य किसी भी योनि में नहीं। यानी परमात्मा को जाना-समझा और पाया जा सकता है। ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरन्तर श्रद्धापूर्वक सत्संग करते रहने से ही लिया हुआ ज्ञान मन में टिकता है और ज्ञान टिकने से ही मन भक्ति में लगता है। अन्यथा मन भक्ति में नहीं लगता। भक्ति करने से ही आवरत आत्मा से रजो व तमो का मल हटने लगता है और शुद्ध आत्मा अपने मूल स्वरूप में वापस लौटने लगती है। यही मनुष्य योनि में हमारी शुद्ध कमाई है।

       भूतकाल, यानी वर्तमान जीवन में या पहले की मनुष्य योनियों में हमारे द्वारा किए गए कर्मों से मिलने वाले फल को कोई नहीं बदल सकता। हां, हम मनुष्य नए पुरुषार्थ द्वारा क्रियामान कर्मों को एक अच्छी दिशा दे सकते हैं। और पुराने बुरे कर्मों के फल के असर को केवल कमजोर ही कर सकते हैं, लेकिन समाप्त नहीं कर सकते। जबकि सत्संग के अभाव में अक्सर हमसे नए बुरे कर्म होते ही रहते हैं। इसलिए बुरे कर्मों से बचने के लिए हमें ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना ही होगा। तभी हमसे सहज रूप से शुभ होने लगते है।

 *ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

RC Singh.7897659218.

Post a Comment

Previous Post Next Post