*सद्गुरु ब्रह्मज्ञान द्वारा सूक्ष्म आदिनाम को हमारे भीतर प्रकट कर देते हैं।*
श्री आर सी सिंह जी रिटायर्ड एयरफोर्स ऑफिसर
एक बार नदी की तेज धारा में दो व्यक्ति बहे जा रहे थे।अपने आपको बचाने के लिए, वे दोनों ही हाथ पैर मारने लगे।तभी उनमें से एक को लकड़ी का एक बड़ा सा डंडा मिल गया।उसे पाते ही वह अहं से भर गया कि अब मुझे कोई लहर नहीं डुबो सकती।थोड़ी देर बाद, दूसरे व्यक्ति को एक पतली सी रस्सी दिखी।उसके सिरे को किनारे पर खड़े एक बलवान व्यक्ति ने पकड़ रखा था।दूसरे डूबते व्यक्ति ने जल्दी से रस्सी के दूसरे सिरे को पकड़ लिया।रस्सी लकड़ी के डंडे की तरह मजबूत नहीं दिख रही थी।डंडा पकड़े हुए व्यक्ति ने इस रस्सी पकड़े हुए व्यक्ति का मज़ाक उड़ाते हुए कहा-- 'किस भ्रम में हो?इस पतली सी रस्सी से नदी पार कर लोगे? व्यक्ति का इतना कहना ही था कि एक तेज लहर उठी और उसको उसके डंडे समेत बहाकर ले गई।वहीं कमजोर जान पड़ती रस्सी को पकड़ा व्यक्ति किनारे पर सकुशल पहुंच गया।
सज्जनों, यहाँ नदी भवसागर का प्रतीक है।इसमें हम और आप सभी डूब रहे हैं।लकड़ी का डंडा उन साधनों का प्रतीक है, जिन्हें हम इस भवसागर से पार होने के लिए अपनाते हैं। जैसे- जप,तप, तीर्थों पर जाना,दान-पुण्य करना इत्यादि... हम सोचते हैं कि इनके सहारे हम भवसागर से पार हो जाएंगे।लेकिन हम भूल जाते हैं कि भवसागर में निरंतर सुख दुःख की लहरें उठती और गिरती रहती हैं।हमारे ये साधन चाहे कितने ही सशक्त क्यों न लगें, पर ये लहरें हमें अपने साथ बहा ले जाती हैं और अंततः डुबो देती हैं।
लेकिन वहीं दूसरा एक साधन है, जो भवसागर के किनारे खड़े जागृत पुरुष हमें बचाने के लिए हम तक पहुंचाते हैं।ये पुरुष साधारण नहीं, असाधारण महापुरुष हुआ करते हैं।पूर्ण सद्गुरु होते हैं।ये मानव समाज को पार लगाने के लिए सब तक एक साधन पहुँचाते हैं।यह साधन है, महीन रस्सी यानि महीन श्वासों में चल रहा ईश्वर नाम।सद्गुरु ब्रह्मज्ञान द्वारा इस सूक्ष्म आदिनाम को हमारे भीतर प्रकट कर देते हैं।सांसारिक लोग इस सूक्ष्म ज्ञान की शक्ति को समझ न पाने के कारण इस मार्ग पर चल रहे शिष्यों का उपहास करते हैं।परन्तु जो अपने गुरु पर विश्वास कर इस ज्ञान की रस्सी को कसकर थामे रखते हैं, साधना सुमिरन से निरंतर जुड़े रहते हैं, वे एक दिन भवसागर पार हो ही जाते हैं।चाहे कितनी ऊँची लहरें उठें,वे डूब नहीं सकते क्योंकि इस रस्सी का दूसरा छोर गुरु के सशक्त हाथों में होता है।
*ॐ श्री आशुतोषाय नमः*
RC Singh.7897659218.
