सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                        *ब्रह्म एक, नाम अनेक*

              श्री आर सी सिंह जी रिटायर्ड एयरफोर्स ऑफिसर

वृहन्नारदिय में कहा गया है कि विष्णु ही शिव है और शिव ही विष्णु है। जो यह समझता है कि दोनों अलग-अलग है वह नरक में जाता है।

हरि रुपी महादेवो लिंग रूपी जनार्दन:।

ईषदप्यन्तरऺ नास्ति मेदकृन्नरक॑ व्रजेत ।।

जिसे विष्णु समझा जाता है, वे ही रूद्र है, वही ब्रह्मा है। रूद्र, विष्णु और ब्रह्मा के रूप में एक ही शक्ति काम कर रही है। जब -जब वह शक्ति संत महापुरुषों के रूप में आई है ,तो धर्म की स्थापना के लिए आई है। परंतु जब वे लोग अपना संदेश देकर चले गए तो उनके नाम पर लोगों ने एक नया धर्म बना लिया। जब त्रेता में प्रभु श्री राम आए तो मानव को मिली रामायण। द्वापर में श्री कृष्ण आए तो मनुष्य को मिली श्रीमद्भागवत गीता। जब श्री गुरु गोविंद सिंह जी आए तो  मिला श्री गुरु ग्रंथ साहिब। अब विचार यह करना है कि क्या धार्मिक ग्रंथों को ही हम धर्म की स्थापना समझें? ऐसा नहीं है।

ऐसा उचित नहीं जान पड़ता। इसका अर्थ यह हुआ की धर्म  युग के अनुसार बदलता रहा। पहले एक त्रेता में, फिर एक नया द्वापर में आया, और कलयुग में भी एक नया रूप आ गया। तो इन सबसे पहले धर्म का स्वरूप क्या था? यदि हम आज किसी से भी धर्म की पहचान पूछते हैं, तो बड़ी आसानी से बता देता है कि फला- फला धर्म का यह यह पहचान है। इस धर्म के लोग किस धर्म ग्रंथ को मानते हैं। उस धर्म के लोग किस धार्मिक ग्रंथ को मानते हैं। कौन बुद्ध है ,कौन हिंदू है, कौन सिक्ख है, कौन मुसलमान है, कौन ईसाई है। बहुत आसानी से हम इन सभी का पहचान बता सकते हैं। परंतु क्या ये सभी धर्म है? धर्म तो अनेक हो ही नहीं सकते। ये धर्म नहीं संप्रदाय है।और संप्रदाय अनेक हो सकते हैं, मत अनेक हो सकते हैं, पर जहां धर्म का प्रश्न है यह तो सदा से ही एक रहा है। धर्म वही है जो अनादि है, धर्म संस्कृत के धृ धातु शब्द से निकला है। जिसका मतलब होता है ,धारण करना। किसको धारण करना?

उस ईश्वर को धारण करना, साक्षात्कार करना, वास्तव मे

वही धार्मिक है।

यह उपलब्धि पूर्ण गुरु के कृपा के द्वारा प्राप्त होता है।

स्वामी विवेकानंद धर्म के बारे में बताते हैं-

"Religion is a realization of God within you with the help of perfect Master."

अर्थात, जब हम सद्गुरु की कृपा से ईश्वर की अनुभूति अपने घट में करते हैं वही धर्म है।

*ओम् श्री आशुतोषाय नमः*

RC Singh.7897659218.

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