*" संतोष "*

श्री आर सी सिंह जी रिटायर्ड एयरफोर्स ऑफिसर
संतुष्टि, व्यक्ति को जीते जी मुक्त करा देती है। इसलिए जो संतुष्ट है, वही मुक्त भी है। संतों का मत है कि इच्छाओं का शेष रहना और श्वासों का खत्म हो जाना ही मोह एवं इच्छाओं का खत्म हो जाना और श्वासों का शेष रहना ही मुक्ति है। आप अपने जीवन में कितने संतुष्ट हैं अथवा आपने अपना जीवन कितनी संतुष्टि में जिया यही आपकी मुक्ति का मापदंड भी है। किसी की संतुष्टि ही जीवन में उसकी मुक्ति का मापदंड भी निर्धारित करती है।
संतोषी व्यक्ति के जीवन में प्रसन्नता अपने आप प्रवेश कर जाती है। जहाँ किसी की अनगिन इच्छाएं उसके चिंता और विषाद का कारण बनती हैं, वहीं संतोष किसी व्यक्ति की प्रसन्नता का कारण भी बनता है। संतोष केवल वाह्य प्रसन्नता नहीं अपितु आंतरिक स्थिरता भी प्रदान करता है।
संतुष्टि का अर्थ निष्क्रिय हो जाना नहीं अपितु अपेक्षा रहित परिणाम है। संतुष्टि किसी व्यक्ति के जीवन को निष्क्रिय नहीं अपितु केवल धैर्यवान बनाती है। हमारी प्राथमिकता सदैव पूर्ण निष्ठावान होकर अपना श्रेष्ठतम देते हुए परिणाम के प्रति अपेक्षा रहित होकर निरंतर गतिमान रहना होनी चाहिए। क्योंकि परिणाम के प्रति हमारी अपेक्षाएं जितनी कम होगी , हमारी संतुष्टि का ग्राफ भी उतना ही अधिक होगा।
*ओम् श्री आशुतोषाय नमः*
RC Singh.7897659218.