*हमारे राम*
'राम' शब्द में दो अर्थ व्यंजित हैं। सुखद होना और ठहर जाना। अपने मार्ग से भटका हुआ कोई क्लांत पथिक किसी सुरम्य स्थान को देखकर ठहर जाता है। हमने सुखद ठहराव का अर्थ देने वाले जितने भी शब्द गढ़े सभी में 'राम' अंतर्निहित है- आराम, विराम,विश्राम, अभिराम, उपराम, ग्राम।
जो रमने के लिए विवश कर दे, वह है राम।
जीवन की आपाधापी में पड़ा अशांत मन जिस आनंददायक गंतव्य की सतत तलाश में है, वह गंतव्य है राम।
भारतीय मन हर स्थिति में राम को साक्षी बनाने का आदी है।दुःख में 'हे राम', पीड़ा में 'ऐ राम, 'लज्जा में 'हाय राम', अशुभ में 'अरे राम राम', स्वागत में 'राम राम', शपथ में 'रामदुहाई', अज्ञानता में 'राम जाने', अनिश्चितता में 'राम भरोसे', अचूकता के लिए 'रामबाण', मृत्यु के लिए 'रामनाम सत्य', सुशासन के लिए 'रामराज्य' जैसी अभिव्यक्तियां पग-पग पर 'राम' को साथ खड़ा करती हैं। 'राम' भी इतने सरल हैं कि हर जगह खड़े हो जाते हैं। हर भारतीय उन पर अपना अधिकार मानता है। जिसका कोई नहीं उसके लिए राम हैं। निर्बल के बल राम। असंख्य बार देखी सुनी पढ़ी जा चुकी रामकथा का आकर्षण कभी नहीं खोता। राम पुनर्नवा हैं। हमारे भीतर जो कुछ भी अच्छा है, वह राम है। जो शाश्वत है, वह राम है। सब-कुछ लुट जाने के बाद जो बचा रह जाता है, वही तो राम है। घोर निराशा के बीच जो उठ खड़ा होता है, वह भी राम ही है।
सीमाओं के बीच छुपे असीम को देखना हो तो राम को देखिए। इसके लिए कुछ नहीं बस, किसी ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करना होता है। और यही मानव जीवन की सार्थकता है।
मानव जीवन एक अवसर है अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का। और हमारा लक्ष्य है ईश्वर यानी राम को जानना और जानकर उनको पाने के रास्ते पर चलना। अगर हम ऐसा करते हैं तो ठीक है, नहीं तो हम फिर से 84 लाख के निम्न योनियों में जाने के लिए मजबूर होते हैं।
*ओम् श्री आशुतोषाय नमः*
RC Singh.7897659218.
