असलीयत ज़ाहिर हो ही जाती है।

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                                श्री आर सी सिंह जी 

एक बार देवतागण विवाद कर रहे थे। मुद्दा था, क्या एक जीवित प्राणी के लिए यह संभव है कि वह अपने स्वभाव को बदले? बृहस्पति ने कहा - 'हाँ'। लेकिन शुक्र ने कहा- 'नहीं'। सवाल का हल ढूंढने के लिए बृहस्पति ने एक बिल्ली को युवती में बदल दिया। फिर एक युवक से उसका विवाह संपन्न कराया। युवा जोड़ा शादी की दावत में बैठा था।

   'देखो तो ज़रा', बृहस्पति ने शुक्र से कहा, 'वह कितनी अच्छी तरह से व्यवहार कर रही है। कौन बता सकता है कि असल में वह एक बिल्ली है? निश्चित रूप से उसका स्वभाव बदल गया है।'

   'एक मिनट रुकिए,' शुक्र ने बीच में टोका। फिर उस कमरे में एक चूहे को छोड़ दिया। ज्यों ही दुल्हन ने चूहे को देखा, वह झट से कुर्सी से कूदी और चूहे को दबोच लिया।

   आहा, अब तुम देखो, शुक्र ने कहा, प्रकृति बाहर निकल ही आई। 

 *संस्कृत सुभाषितानि*

'य: स्वभावो हि यस्यास्ति स नित्यं दुरतिक्रम:।

श्वा यदि क्रियते राजा तत् किं नाश्नात्युपानहम्।।'

-- (आध्यात्मिक साधना के अभाव में) जिसका जो स्वभाव होता है, वह हमेशा वैसा ही रहता है। कुत्ते को अगर राजा बना दिया जाए, तो भी वह जूते चबाने की आदत नहीं भूलता।

    *शिक्षा*

हम चाहे कितना भी दिखावा कर लें, परंतु हमारा स्वभाव नहीं बदलता। जैसे ही परिस्थितियां विपरीत होती हैं, हमारा मूल स्वभाव और चरित्र सामने आ जाता है। केवल ब्रह्मज्ञान की आध्यात्मिक साधना ही मनुष्य के मन और चित्त को गहराई से बदलती है, जिससे व्यक्ति सदा के लिए सद्गुणी हो जाता है। तब ही वह अपने मूल स्वभाव और चरित्र को बदल पाता है।

*ओम् श्री आशुतोषाय नम :*

रमेश चन्द्र सिंह 7897659218.

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