इस ब्रह्माण्ड में एक अदृश्य तरंग है। यह तरंग ही सृष्टि को अनुप्राणित रखती है।*

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                               श्री आर सी सिंह जी                     
जैसे एक अंकुरित बीज, जीवन देने वाले सूर्य की दिशा में उपर की ओर बढ़ता है। वैसे ही, जब अंत:आकाश अंतरात्मा के दिव्य प्रकाश से प्रकाशित होता है तब वह साँसों को ऊपर की ओर खींचता है। उन्हें अंतर्चेतना के अनंत जगत तक ले जाता है।

      एक बार एक राजा अपने मंत्री से रुष्ट हो गया। गुस्से में आकर उसने उस मंत्री को एक ऊँची मिनार की छत पर छुड़वा दिया। यह सब इस प्रयोजन से किया गया था कि मंत्री वहां भूखा प्यासा मृत्यु को प्राप्त हो जाए। मंत्री की पत्नी रात के समय पति से मिलने गई लेकिन मिल नहीं पाई। मंत्री ने पत्नी से कुछ चीजें लाने को कहा - 'एक मोटी रस्सी, मजबूत सुतली, रेशम का धागा, थोड़ा सा शहद और एक भृंगी (कीड़ा)।' जब पत्नी सबकुछ ले आई. तब मंत्री ने निर्देश दिया - 'भृंगी की टाँग के साथ रेशम का धागा बाँध दो। फिर भृंगी के सिर पर शहद लगाकर, उसे मीनार पर, ऊपर की दिशा में, मेरी सीध में छोड़ दो।' शहद के स्रोत तक पहुँचने की अभिलाषा में, भृंगी सीधा-सीधा ऊपर चढ़ता गया। जैसे ही वह मंत्री के पास पहुँचा, मंत्री ने उसे पकड़ लिया और रेशम का धागा उसकी टाँग से खोल दिया। अब रेशम के धागे का एक सिरा उसके हाथों में था और दूसरा उसकी पत्नी के। मंत्री ने अपनी पत्नी से रेशम के दूसरे सिरे से सुतली बाँधने को कहा। फिर सुतली को ऊपर खींच लिया। सुतली के सहारे उसने रस्सी बंधवाकर ऊपर खींच ली। अंततः रस्सी की मदद से वह मीनार से नीचे उतर आया और कैद से स्वतंत्र हो गया।

     यह कहानी श्वासों की गहराई तक पहुंचने में ईश्वर दर्शन की अनिवार्यता को लेकर बहुत मार्मिक संदेश देती है। यहाँ शहद जागृत आत्मा के प्रकाश का प्रतीक है। भृंगी स्थूल श्वासों को दर्शाता है। रेशम का धागा तंत्रिका धाराओं का द्योतक है। सुतली प्राण शक्ति की और रस्सी आदिनाम (अर्थात इस सृष्टि की सबसे शक्तिशाली तरंग) की निरूपक है। एक ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु की अनुकंपा से व्यक्ति ध्यान की शाश्वत प्रक्रिया में दीक्षित होता है। तब वह अपने भीतर (भृकुटी के मध्य में) दिव्य प्रकाश का दर्शन करता है। यह प्रकाश हमारी स्थूल श्वासों को ऊर्ध्वमुखी बनाता है। इंद्रियों से प्रभावित होकर उन्हें इधर-उधर भटकने से रोकता है। इस प्रकार साधक अपनी साँसों पर नियंत्रण बिठा पाता है। इस नियंत्रण से वह तंत्रिका धाराओं तक, उनके माध्यम से प्राण शक्ति तक और प्राण शक्ति के द्वारा सूक्ष्मतम तरंग - आदिनाम से जुड़ जाता है। ऐसा होने पर वह इस ब्रह्माण्ड की सबसे शक्तिशाली तरंग से स्वयं को ऊर्जावान बना लेता है।

       आज वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि इस ब्रह्माण्ड में एक अदृश्य तरंग है। उनके अनुसार यह तरंग ही इस समूची सृष्टि को अनुप्राणित रखती है। ऐसे में, यदि हमें ब्रह्माण्डीय तरंग से संपर्क बिठाना आ जाए यानि आदिनाम से जुड़ना आ जाए, तो हम खुद को ऊर्जा से युक्त कर सकते हैं। तदुपरांत शारीरिक मानसिक व आत्मिक रूप से सशक्त व हृष्ट-पुष्ट जीवन जीने का आनंद प्राप्त कर सकते हैं।

 ओम् श्री आशुतोषाय नम*

रमेश चन्द्र सिंह 7897659218.

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