सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीएक बुढ़िया थी, उसकी दो नौकरानियां थीं। बुढ़िया ने एक मुर्गा भी पाला हुआ था। रोज सुबह-सुबह जब मुर्गा बाँग देता, तो वह बूढ़ी मालकिन अपनी नौकरानियों को उठा देती और अपने घर, खेत खलिहानों के कामों में लगा देती। नौकरानियों को सुबह-सुबह उठना नागवारा था। वे हमेशा मुर्गे को कोसती कि क्यों सुबह-सुबह बाँग देकर मालकिन को जगा देता है।
एक दिन नौकरानियों ने मिलकर तय किया कि मुर्गे का काम तमाम कर दिया जाए। उन्होंने मिलकर मुर्गे को मारकर छुपा दिया। फिर चैन से सोने चली गई। यही सोचकर कि अब न तो मुर्गा बाँग देगा, न उन्हें सुबह-सुबह उठकर काम करना पड़ेगा।
मगर यह क्या हुआ? चूँकि अब मुर्गा नहीं था, इसलिए बूढ़ी मालकिन सुबह होने से पहले ही नौकरानियों को जगाने लगी। कभी-कभी तो आधी रात को ही उन्हें जगा देती और डंडा घुमा घुमा कर काम करवाती।
*संस्कृत सुभाषितानि*
"यो ध्रुवाणि परित्यज्य अध्रुवाणि निषेवते।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवाणि नष्टमेव हि।।"
_ जो निश्चित को छोड़कर अनिष्चित का आश्रय लेते हैं, उनका निश्चित भी नष्ट हो जाता है और अनिष्चित तो नष्ट के समान ही है।
*शिक्षा*
- अपनी समस्याओं का हल तुरंत निकालने के चक्कर में हम अक्सर विवेकहीन कर्म कर डालते हैं। इस वजह से पहले से भी बड़ी समस्या मोल ले लेते हैं। ध्यान रखें, वर्तमान स्थितियां हमेशा हमारे अनुकूल नहीं हो सकतीं। ऐसे में, धैर्य के साथ पर्याप्त चिंतन करके ही किसी नतीजे पर पहुँचना चाहिए।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
रमेश चन्द्र सिंह 7897659218.
