सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीहम भौतिक जगत में अंधाधुंध चले जा रहे हैं। हमें ज्ञात ही नहीं कि हम कहाँ और क्यों जा रहे हैं। दिशा विहीन, लक्ष्य विहीन होकर चलते जा रहे हैं। हमारी सोचने समझने की क्षमता नष्ट हो चुकी है। महापुरुष कहते हैं- "जीवन का महत्व केवल तभी है, जब वह किसी महान उद्देश्य के लिए समर्पित हो और यह समर्पण न्याययुक्त आध्यात्मिक हो।" स्वामी विवेकानंद भी दिशा और लक्ष्य की महिमा को बताते हुए कहते हैं- "एक विचार पर स्थिर रहिए, उस विचार को अपने जीवन का लक्ष्य बना लीजिए।" अत: यही तरीका है चलने का, क्योंकि 'दिशा मिलेगी तो ही हमारी दशा संवरेगी।'
सांसारिक कार्य हमारे जीवन को बोझिल करते जा रहे हैं। हम संसार के कर्तव्यों, कार्यों, कामनाओं के भार तले दबते जा रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि हम न तो बाहर की खूबसूरत दुनिया देख पा रहे हैं और न ही अंदर के आनंद जगत से जुड़ पा रहे हैं। किसी शायर ने खूब लिखा है - -
"उठाए फिरता हूँ मैं बोझ ख्वाहिशों का,
ऐ जिन्दगी तूने मजदूर बना डाला।"
शायद इसीलिए आज कोई खुश नहीं दिखता। पर इस परेशानी का एक रामबाण इलाज है। संत कहते हैं- "भगवान आपके द्वारा उठाए जाने वाले बोझ से कहीं अधिक विशाल हैं। अपने बोझ को भगवान के चरणों में डाल दो। वह निश्चित ही आपको संभाल लेंगे। "
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
"श्री रमेश जी"
