सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीप्रकृति के सभी जीवों का प्रथम लक्ष्य अपने स्थूल शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सामान्य रूप से क्रियायें करना एक आम बात है। इसी तरह सभी मनुष्यों का भी सारा जीवन अपने बने हुए लक्ष्य के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है। अब यदि हमारा लक्ष्य ही धन कमाना है, तो हमारे सभी कर्म ही नहीं, बल्कि विकर्म भी स्वभाविक ही उसी दिशा में होने लगते है। जबकि मनुष्य योनि पा कर हमारा प्रमुख लक्ष्य परमात्मा को पाने का ही होना चाहिये। क्योंकि परमात्मा को पाने का लक्ष्य बन जाने से विकर्म/पाप कभी भी नहीं होते।भगवान को तत्वरूप से जानने समझने के लिए बार-बार ज्ञान रूपी सत्संग का श्रवन करते रहें और बार बार शास्त्रों को पढ़ें। जीवन में निरंतर ऐसा करते रहने से ही परमात्मा से ज्ञानपूर्वक जुड़ना संभव हो सकेगा। अन्यथा धार्मिक कर्मकांड करते हुए जीवन चलता तो रहता है, लेकिन आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती ।
भगवान की ब्रह्मशक्ति निर्गुण निराकार रूप में सर्वव्यापी है। जबकि सगुण निराकार परमात्मा के रूप में वो हमारे आपके व अन्य सभी जीवों के अंदर ही हैं। हम परमात्मा को अपने अंदर से निकाल तो नहीं सकते, हाँ भुला अवश्य सकते हैं। जब मनुष्य प्रकृति के रजोगुणी भोगों में मर्यादा से अधिक लिप्त हो जाता है यानी सन्मुख हो जाता है तो उसी समय परमात्मा से विमुख हो जाता है। देखिये, जिसकी यादें हमारे मन में नहीं होती, उससे रिस्ता बनाने में बहुत मुश्किलें आती हैं। अर्थात रिस्ते सदा ही यादों से बनते हैं, जोकि निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करते रहने से ही संभव हो पाता है, अन्यथा नहीं।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
"श्री रमेश जी"
