सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीहम एक जड़ वस्तु के समान जीवन जी रहे हैं, जो खाँचे में जकड़ी हुई है। यह खाँचा है - हमारे संकीर्ण और नकारात्मक नजरिए का, सांसारिक और मानसिक बंधनों का। पर जानते हैं, असली विडम्बना क्या है? हम इस कैद से बाहर निकलना ही नहीं चाहते। इसलिए ताउम्र इस बंधन में बंधे रहते हैं।
पर सलाम है उनलोगों को, जो इस कैद से बाहर निकलने का प्रयास आरंभ करते हैं। स्वतंत्रता इतनी सहजता से नहीं मिलती। पर जो इस संघर्ष से गुजर जाता है, कठिनाइयों के आगे झुकता नहीं है, उसे ही स्वतंत्रता का खुला आसमान मिलता है। वही बंधनमुक्त होकर आनंद से झूमता है।
क्या आप स्वतंत्रता का आनंद चखना चाहते हैं? तो धारण कीजिए, भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश को जो उन्होंने हम सभी अर्जुनों के लिए दिया है -
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:।।" (गीता, 18/66)
अर्थात तू सब धारणाओं को त्याग कर मेरी शरण ले। मैं तुझे सब पाप बंधनों से मुक्त कर मोक्ष (परम स्वतंत्रता) प्रदान कर दूँगा।
अत: आज हमें भी श्रीकृष्ण जैसे पूर्ण सद्गुरु की खोज कर उनकी शरणागति को पाना होगा ताकि हम भी बंधनों से मुक्त हो सकें।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
"श्री रमेश जी"