*यह विश्व एक व्यायामशाला है।

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                     श्री आर सी सिंह जी 

मानव आत्मा अनंत एवं अनश्वर है, पूर्ण एवं असीम है और मृत्यु का अर्थ उसके एक शरीर से दूसरे शरीर में केन्द्र  परिवर्तन है। हमारे वर्तमान का निर्धारण हमारे अतीत के कर्मों से होता है और भविष्य का निर्धारण हमारे वर्तमान के कर्मों से होगा। आत्मा जन्म दर जन्म और मृत्यु दर मृत्यु उदित और विलीन होती रहेगी। इसलिए हे युवाओं। खड़े हो जाओ और अपने मन से इस भ्रम को निकाल बाहर फेंकों कि तुम भेड़ें हो। तुम एक अनश्वर और स्वतंत्र आत्मा हो, भाग्यवान और अनंत हो।तुम पदार्थ या शरीर नहीं हो। पदार्थ तुम्हारा सेवक है, तुम पदार्थ के नहीं।कभी  यह मत सोचो कि आत्मा के लिए कुछ भी असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म होगा। इस संसार में अगर कोई पाप है, तो वह है- यह कहना कि तुम निर्बल हो। हम वह हैं, जो हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखो कि तुम क्या सोचते हो। शब्द गौण हैं, जबकि विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।जब तक तुम खुद पर विश्वास नहीं करोंगे, तब तक तुम उस सर्वशक्तिमान परमात्मा, ईश्वर पर विश्वास नहीं कर सकते। इसके लिए नियमित और व्यवस्थित साधना की आवश्यकता होती है, जिसके लिए सबसे पहले मन को नियंत्रित करना होता है।यह एक दिन का काम नहीं है, इसे  अपने दैनिक जीवन का अंग बनाना पड़ेगा। जब मन नियंत्रित हो जाता है तो ऐसा महसूस होता है जैसे परमात्मा की प्राप्ति हो गई है। यह मानव शरीर एक औजार है, जिसका उपयोग उस परमतत्व को प्राप्त करने में लगाना चाहिए, और इसके लिए अपनी मांसपेशियों को अधिक मजबूत बनाना पड़ेगा। अपने मन और शरीर को मजबूत बनाने से जीवन के भवसागर को पार करने में सफलता मिलेगी। यह विश्व एक व्यायामशाला है, जहां हम सभी खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।इसलिए हे शक्तिमान, उठो और सामर्थ्यवान बनो। निरंतर कर्म और  निरंतर संघर्ष करो। पवित्र और नि:स्वार्थी बनो, क्योंकि सारा धर्म इसी में है। भाग्य बहादुर और कर्मठ व्यक्ति का ही साथ देता है। पीछे मुड़कर मत देखो, अपार शक्ति, अपरिमित उत्साह, अमित साहस और असीम धैर्य से ही महत कार्य संपन्न किये जा सकते हैं। 

"*स्वामी विवेकानंद*"

*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

"श्री रमेश जी"

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