सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीएक स्त्री अपने पिता के यहां से लौटी, तो अपने पति से कहा कि मेरा भाई विरक्त हो गया है। वह अगली दिवाली पर दीक्षा लेकर साधु बनने वाला है।अभी से उसने तैयारी प्रारंभ कर दी है। वह अपनी संपत्ति की उचित व्यवस्था करने में लगा है।पत्नी की बात सुनकर पति हंसने लगा। स्त्री ने पूछा- तुम हंसे क्यों? इसमें हंसने की क्या बात थी? पति बोला- और तो सब ठीक है, किंतु तुम्हारे भाई का वैराग्य मुझे बहुत अद्भुत लगा। अगर उसके मन में विरक्ति की भावना आ गई है तो तत्काल सन्यास ले लेना चाहिए।दीक्षा लेने के लिए भी कहीं तिथि देखी जाती है क्या? और तुम ही बता रही हो कि वह संपत्ति की उचित व्यवस्था में लगा है।विरक्त व्यक्ति को संपत्ति से क्या लेना देना। तैयारी करके सन्यास नहीं लिया जाता। त्याग तो सहज ही हुआ करता है। स्त्री को बुरा लगा। वह बोली- ऐसे ज्ञानी हो, तो तुम्हीं संन्यास लेकर क्यों नहीं दिखाते। पति ने कहा, मैं तो तुम्हारी अनुमति की ही प्रतीक्षा में था। इतना कहकर पुरुष मात्र एक धोती में घर से निकल पड़ा। स्त्री ने समझा कि यह परिहास है। थोड़ी देर में लौट आएगा, परंतु वह तो लौटने के लिए गया ही नहीं था। सच है, वैराग्य के लिए कोई तिथि नहीं सोची जाती।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
"श्री रमेश जी"