*जीवन के लक्ष्य को जानकर मृत्यु के भी पार पहुंचा जा सकता है।*

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                      श्री आर सी सिंह जी 

               श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है -

           दुर्लभो मानुषो देहो देहीनां क्षणभंगुर:।'

    सर्वप्रथम इस मनुष्य तन की प्राप्ति ही बहुत मुश्किल है और फिर इसे क्षणभंगुर बताया गया है, पानी के बुलबुले के समान। इसलिए महापुरुष कहते हैं - "हे मानव, जाग जा। दिन या रात का विचार न कर, क्योंकि तेरी उम्र क्षण प्रतिक्षण घट रही है। जिस प्रकार घड़ा फूट जाता है और पानी बिखर जाता है, उसी प्रकार तेरा जीवन भी नष्ट हो रहा है।" 

    अतः हमें चाहिए कि हम इस शरीर के समाप्त होने से पहले ही इस शरीर का लाभ उठाते हुए जीवन के वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त करें। यह शरीर तो हमें लक्ष्य को साधने के लिए साधनरूप में मिला है। इसलिए तुलसीदास जी कहते हैं कि -"साधन धाम मोक्ष कर द्वारा।" यह शरीर साधन है, मुक्ति के द्वार का। परंतु इस तन को प्राप्त करके मनुष्य भूल जाता है कि यह तन एक दिन छिन जाता है। 

    यदि मोहल्ले में किसी के घर चोरी हो जाए तो हम अपने घरों के किवाड़ अच्छी तरह जाँचते हैं। परंतु जीव संसार के नशे में इस प्रकार से अंधा है कि प्रतिदन कितने ही मनुष्यों को मृत्यु का ग्रास बनते हुए देखकर भी मृत्यु को भूला हुआ है। 

    हम प्रतिदिन देखते हैं कि जीव शरीर छोड़कर गया तो साथ में कुछ भी नहीं ले गया। परंतु हम फिर भी बहुत कुछ सँभाले हुए हैं कि शायद हम तो ले ही जाएँगे। ये संसार की वस्तुएं भी तभी सार्थक हो सकती हैं जब जीवन की वास्तविकता को जान लिया जाए। 

    कोई बहुत सुन्दर भी हो और ऊँचे कुल वाला भी। सांसारिक ज्ञान भी हो और धन की भी कमी न हो। परंतु यदि प्रभु से प्रीति नहीं, प्रभु से प्रेम नहीं तो कहते हैं कि वह एक मृतक के समान ही है। 

वास्तव में जीवित प्राणी वही है, जिसने जीवन की वास्तविकता को प्राप्त कर, उन्नति के मार्ग पर कदम रखे हों और आगे बढ़े। उसी का जीवन सफल है, क्योंकि जीवन के लक्ष्य को जानकर ही मृत्यु के भी पार पहुँचा जाता है। 

*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

"श्री रमेश जी"

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