श्री हनुमान प्रसाद चौबे
मकान,धन, स्त्री, संतान,पद, प्रतिष्ठा आदि की कामना या इच्छा को सांसारिक काम कहते हैं।
कामना के सामने मनुष्य विवेकशून्य अंधा हो जाता है। इसी लिए कामांध कहा जाता है। कहावत है कि
We perceive things not as they are but as we are.अर्थात् हम वस्तुओं को उनके रुप में नहीं बल्कि अपने अनुसार देखते हैं। वस्तु का असल रूप कामांधता के कारण छिपजाता है जैसे अंधेरे में रस्सी सर्प लगती है।
काम अज्ञान जैसा कार्य करता है।
काम पूरा होने पर लोभ उत्पन्न होता है और पूरा न होने पर क्रोध उत्पन्न होता है।
रजोगुण से उत्पन्न काम भोगों से कभी तृप्त नहीं हो ता और मनुष्य का महान् शत्रु है।
जैसे धुएं से अग्नि,मैल से दर्पण और जेल से गर्भ ढका होता है वैसे ही कामना से ज्ञान अर्थात् वस्तु का असल रुप छिप जाता है। काम अज्ञान बन जाता है।
