सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीतैत्तिरीय उपनिषद के दूसरे भाग को ब्रह्मानन्दवल्ली कहा जाता है। इसमें स्पष्ट लिखा है कि भगवान आनंद में नहीं हैं भगवान ही आंनद हैं। एक बार की बात है एक प्रचारक से महाराज जी बहुत प्रसन्न थे। महाराज जी ने उनसे कहा- मांगो, तुम्हें आज जो चाहिए मांग लो न्न रहें। महाराज जी बोले- हम तो हमेशा प्रसन्न ही रहते हैं। क्योंकि हम आंनद ही तो हैं। सच ही तो है जो भी महाराज जी के संपर्क में आता है, वह भी आनंद रूप ही हो जाता है। एक बार एक शिष्य ने महाराज जी से कहा, महाराज जी, मुझे भूतों से बहुत डर लगता है। तब महाराज जी ने वहीं बैठे दूसरे शिष्य को देखते हुए कहा- अरे, सबसे बड़ा भूत तो यही है। कहकर महाराज जी ताली मार कर हंसने लगे।फिर खड़े़ हुए और अपने कक्ष का दरवाजा खोल दिया। बाहर कुछ प्रचारक भाई और बहनें महाराज जी के दर्शनों के लिए खड़े थे। महाराज जी उन एक-एक की तरफ इशारा करते हुए बोले- यह भी भूत है, यह भी भूत है। घबराहट के मारे कांप उठा। सोचने लगा, इतने सारे भूत एक जगह पर। वो उदास गया। मुझे कोई दुख नहीं होगा। बताइए न, मैं कौन सी वैराइटी का भूत हूं। और देखें संस्कृत में प्राणी को भूत कहते हैं।और तुम सभी भूत प्राणी ही तो हो। इस हिसाब से सारे भूत ही तो हुए। फिर महाराज जी ने समझाते हुए कहा- देखो, हमारे ऋषि हर प्राणी को चेतावनी देना चाहते सबे, इीइे एलकय देह नहीं रहेगी।वर्तमान भूत बन जाएगा।इस सच को मनुष्य को हमेशा याद रखना चाहिए कि उसगं जीवैन क्षण , इसलिए वो भक्ति करे। भूत बनकर न रह जाए, वर्तमान और भविष्य को सुधारे। वह शिष्य कहता है कि मुझे तब तो बस इस बात की खुशी हुई कि मैं भूत पिशाच वाला भूत नहीं चो आज । महाराज जी का हास्य भी कितना taasg gitas-on को लिए हुए है। यानी जो बात महाराज जी हंसी खेल में भी कह देते हैं, उसमें भी अध्यात्म के अनमोल रत्न छिपे होते है।
**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
