सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जी*- सिद्धिदात्री*
"सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदाभूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।"
नवम नवरात्रे के दिन माँ के इस स्वरूप की पूजा की जाती है। सिद्धिदात्री अपने नाम से ही यह परिभाषित करती हैं कि वे सिद्धियों को देने वाली हैं। लेकिन हमारे जीवन में माँ इस रूप में तभी प्रकट होती हैं, जब हम समस्त विद्याओं की सारभूत ब्रह्मविद्या को धारण कर लेते हैं। माँ स्वयं कहती हैं -
"ये माँ भजन्ति सद्भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्।
न च मेस्तिप्रिय: कश्चिदप्रियोपि महामते।।"
अर्थात जो लोग मेरी वास्तविक भक्ति को जानकर मेरी आराधना करते हैं, वे मुझमें और मैं उनमें स्थित रहती हूँ। वे मेरे द्वारा प्रदान की गई सिद्धियों को स्वत: ही प्राप्त कर लेते हैं।
अतः भक्तजनों, माँ अपने नवरूपों में समग्र मानव जाति को यही संदेश देती हैं -
"एवं वियुक्तकर्माणि कृत्वा निर्मलमानस:।
आत्मज्ञानसमुद्युक्तो मुमुक्ष: सततं भवेत।।"
शुद्ध अंत:करण वाले मोक्षार्थी साधक को आत्मज्ञान की प्राप्ति में निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
'श्री रमेश जी'
