*माँ के नौ रूप*

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                      श्री आर सी सिंह जी 
"मातृदेवो भव पितृदेवो भव आचार्य देवो भव। 

पितु: शतगुणा पूज्या वन्द्या माता गरीयसी।।"

    पिता से शतगुणा पूज्या माँ है, क्योंकि माँ एक शिशु के निर्माण में श्रेष्ठ भूमिका निभाती है। जिस प्रकार लौकिक माँ अपने बालक के विकास के लिए कभी स्नेह की वर्षा करती है, तो कभी क्रोधित होती है। ठीक उसी प्रकार माँ भगवती जगदम्बिका भी हम मानवों के कल्याण हेतु विविध रूप धारण कर इस धरा पर अवतीर्ण होती है। इसी का एक प्रमाण नवरात्रों के दिनों में भी देखने को मिलता है, जिसमें माँ दुर्गा की नौ रूपों में पूजा होती है। 

"प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी, 

तृतीयं चंद्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्। 

पंचमं स्कंदमातेति षष्ठं कात्यायनीति च, 

सप्ममं कालरात्रीति च महागौरीति चाष्टमम्।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।"

*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

'श्री रमेश जी'

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