**गुरु शिष्य को आध्यात्मिक अनुभवों के मीठे फल चखाते रहते हैं।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                       श्री आर सी सिंह जी 

स्वामी अद्भुतानन्द (लाटु) एक दिन ठाकुर के पास गये और बोले- ठाकुर, मैं आपकी आज्ञनुसार हर रोज नियम से  निरंतर ध्यान साधना का अभ्यास करता हूं लेकिन फिर भी मुझे ऐसा क्यों लगता है कि कुछ तो है जो मुझे  आंतरिक यात्रा में आगे बढ़ने से रोक रहा है!ठाकुर, मैं  क्या करूं? उसी रात जब सभी शिष्य सोने की तैयारी कर रहे थे, तो ठाकुर का एकदम कड़क स्वर गूंजा- यहां तुम मेरे पास सोने आए हो क्या?कोई काम धाम नहीं है? बस सोते ही रहते हो। ठाकुर हम सबने अपनी सेवाएं पूर्ण कर ली थीं, अब थोड़ा विश्राम करने जा रहे थे! लाटु बोला! सेवा पूर्ण की तो क्या? ध्यान साधना का अभ्यास भी करो! और  तुम लाटू, तुम आज सारी रात बेलतला में जाकर ध्यान  करोगे! लाटू ने गुरु आज्ञा का पालन किया!वहां जाकर लाटू ध्यान में बैठ गया! पहले पहल उसको उसी आंतरिक संघर्ष से जूझना पड़ा!लेकिन फिर लाटू के मन के विचार शांत होते गए!लगभग मध्य रात्रि में एकाएक लाटू की रीढ़ की हड्डी में एक दिव्य तरंग दौड़ी जिसने नींद के झटकों से लुढ़कती गर्दन को एकाएक सीधा कर दिया! लाटु सीधा तन कर दृढ़ हो साधना में स्थिर हुआ! बस फिर क्या था! मन ने आज्ञा चक्र के द्वार से आंतरिक जगत में उड़ान भरी और आध्यात्मिक अनुभवों के मीठे फल चखने लगा! और इसी आनंद में कब सारी रात बीत गई  लाटु को पता तक ना चला! सुबह पंछियों की चहचहाहट  सुनकर जब लाटु के नेत्र खुले, तो उसके दाईं और बाईं ओर दो स्वान बैठे उसकी रखवाली कर रहें थे! सामने  खड़े थे, लाटु के गुरुदेव ठाकुर रामकृष्ण परमहंस! ठाकुर  बोले अब तो ध्यान लग गया ना? वो जो कुछ था जो तेरी साधना में बाधा पैदा कर रहा था, सब गुपचुप फुस्स हो गया ना? इतना कह ठाकुर ताली बजाकर हंस दिए! लाटू ने पूछा वो मेरे आस-पास बैठे दोनों स्वान कौन थे? मैंने महाकाली से प्रार्थना की कि मेरे पुत्र की साधना के सब व्यवधान हटा दो! और देख लाटू, माता भद्रकाली ने तेरी सुरक्षा के लिए दो रक्षकों को भी भेज दिया! तू तो बड़भागी है रे! बाहर और भीतर दोनों से तेरी रक्षा हो गई! गुरु कृपा का प्रत्यक्ष प्रमाण देख लाटु अब खड़ा ना रह सका!छलकते आंसुओं संग लाटु भी ठाकुर के चरणों में  आन गिरा!

**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

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