सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जी
**3- चन्द्रघण्टा**
'पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपस्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।'
तीसरे नवरात्रे में माँ के इसी रूप की पूजा होती है। माँ के चन्द्रघण्टा स्वरूप में दश भुजाएँ हैं, जो पाँच कर्मेन्द्रियों व पाँच ज्ञानेन्द्रियों की प्रतीक हैं। माँ के इस रूप से हमें जितेन्द्रिय होने की शिक्षा मिलती है।
जो मानव इन इन्द्रियों के अधीन है, वह सदैव बंधन में जीवन व्यतीत करता है। इसलिए माँ भगवती कहती हैं--
'रूपं मे निष्कलं सूक्ष्मं वाचातीतं सुनिर्मलम्।
निर्गुणं परमं ज्योति: सर्वव्याप्येक कारणम्।।'
मुमुक्षुओं को देह बंधन से मुक्ति के लिए मेरे निष्कल, सूक्ष्म, वाणी से परे, अत्यंत निर्मल, निर्गुण, परम ज्योति, इन्द्रियातीत स्वरूप का ध्यान करना चाहिए (जो ब्रह्मज्ञान द्वारा ही अंतर्जगत में प्रकट होता है)।
**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"
