सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीस्वामी विवेकानंदजी कहते हैं, यदि आप प्रभु का ध्यान तेल की धार की तरह करते हैं तब ही आप सत्य की पहचान कर पाएंगे और वह सत्य आपको बंधनों से मुक्त कर देगा।
ईसामसीह कहते हैं कि वही इंसान सत्य को जानकर बंधनों से स्वतंत्र हो सकता है जो गुरु की आज्ञा में रहकर हर समय प्रभु चिंतन में मगन रहता है।
संत कबीरजी कहते हैं- जो मार्ग मुक्ति प्रदान करने वाला है, वह बहुत तंग है और बहुत कम लोग इस मार्ग पर चल पाते हैं।क्योंकि इंसान अपनी इच्छा और तृष्णा का त्याग नहीं करना चाहता।
अधिकतर लोग जब किसी धार्मिक स्थान पर जाते हैं तो वो परमात्मा से मिलना नहीं चाहते अपितु अपनी सांसारिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए जाते हैं।
यदि उनलोगों के जीवन में थोड़ा भी दुख आ जाए तो वह परमात्मा को मानने से ही इंकार कर देते हैं। क्योंकि वे केवल मांगना ही जानते हैं। इंसान संसार की किसी वस्तु को छोड़ना नहीं चाहता और सत्य भी प्राप्त करना चाहता है।
उसके सामने दो मार्ग हैं- एक आध्यात्मिक मार्ग, जो सत्य और शान्ति प्रदान करता है और दूसरा
मार्ग विषय वासनाओं का, जो अशांति और पाप के गहरे समुद्र में डुबो देता है।
ईसा मसीह कहते हैं कि जो महापुरुषों के द्वारा बताए मार्ग पर चलता है, वह मृत्यु को भी पार कर जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं--
'नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।गीता2-23.
अर्थात, इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकता, आग जला नही सकती, पानी गीला नहीं कर सकता और हवा सुखा नहीं सकती
। जब जीव इस सत्य को
जान लेता है तो फिर मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है।
**ओम् श्रीआशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"
