**ब्रह्मज्ञान शास्त्र सम्मत वह विधि है, जिससे मनुष्य आत्म साक्षात्कार करता है।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                  श्री आर सी सिंह जी 

ब्रह्मज्ञान सदा से एक असाधारण विषय माना जाता रहा है।  पर बताने वालों ने इसे असाधारण के साथ साथ इतना दुर्लभ और पहुंच से बाहर बता डाला कि आम इंसान इसको पाने की सोचता तक नहीं।  इस मत का प्रचार उन्हीं साधु संतों ने किया जो स्वयं परमात्मा को प्राप्त नही कर पाए।

श्री आशुतोष महाराज जी कहते हैं___ब्रह्मज्ञानी संत करोड़ों में एक हुआ करते हैं।  विडम्बना यह

है कि उस एक ब्रह्मज्ञानी संत का मत, परमात्मा को न जानने वाले असंख्य साधुओं के मत के आगे नगण्य सा रह गया।दरअसल, ब्रह्मज्ञान अथवा ईश्वर दर्शन प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है।

परमात्मा को देखना उतना ही सहज है, जितना कि सूर्य के प्रकाश का दर्शन करना।

'ब्रह्मज्ञान शास्त्र सम्मत वह विधि है,जिससे मनुष्य आत्म साक्षात्कार करता है।  यह विधि तत्त्वेता ब्रह्मनिष्ठ गुरु अपने शिष्यों को देता है।  ब्रह्मज्ञान ही भारत की सनातन गुरु शिष्य परम्परा का आधार है।  वह दिव्य विभूति जो ब्रह्मज्ञान द्वारा मनुष्य का तीसरा नेत्र खोलकर उसे उसके शरीर के भीतर आत्मा-परमात्मा का दर्शन करा दे, शास्त्रों के अनुसार वही सच्चा गुरु है।'

**ओम् श्री आशुतोषाय नमः।**

"श्री रमेश जी"

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