**हमारे धार्मिक स्थानों पर जो भी कर्मकाण्ड या वस्तुएं नजर आती हैं, वे प्रतीक मात्र हैं। परमात्मा का असल मंदिर प्रत्येक मनुष्य के भीतर विद्यमान है।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                  श्री आर सी सिंह जी 

’शांति का स्रोत, आनंद का भंडार प्रत्येक इंसान के भीतर छुपा हुआ है।’  किंतु उसकी तलाश हम बाह्य जगत में कर रहे हैं। जैसे हम देखते हैं कि एक चक्र के उपर बहुत से बिंदु घूमते हैं। जो बिंदु केंद्र से जितना दूर होता जाता है वह उतना ही ज्यादा घूमता है। जो बिंदु केंद्र के समीप होता है वह कम घूमता है परंतु जो बिंदु केंद्र पर होता है केवल वही स्थिर होता है। ठीक इसी प्रकार परमात्मा भी केंद्र है और जितना हम अपने केंद्र से दूर होते जाते हैं उतना ही अशान्त हो जाते हैं।

कहने का तात्पर्य यह है कि जो वस्तु जहाँ पर मौजूद है, वह वहीं पर ढूँढने से प्राप्त हो सकती है, नहीं तो निराशा के अतिरिक्त कुछ हाथ नहीं लगेगा।

  स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि  'जो कुछ भी बाहर दृष्टिगोचर होता है, वास्तव में वह सब कुछ अंतर्जगत का अनुभव है और उसे जानने के लिए दिव्य दृष्टि का होना आवश्यक है।'

  धार्मिक स्थान परमात्मा के वास्तविक घर की नकल है। हमारे धार्मिक स्थानों पर जो भी कर्मकाण्ड या वस्तुएं नजर आती हैं, वे प्रतीक मात्र हैं। परमात्मा का असल मंदिर तो प्रत्येक मनुष्य के भीतर विद्यमान है। जब ये बाहरी क्रियाएं हमारे घट के अंदर प्रकट हो जाएं तब यह समझना चाहिए कि हमारी वास्तविक पूजा आरंभ हो गई है। यह एक ध्रुव सत्य है कि जब हम परमात्मा के घर में प्रवेश करेंगे तो यह सभी बाहरी अनुभव हमारे अंदर भी स्वत: प्रकट हो जाएंगे।

**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**

"श्री रमेश जी"

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