भक्ति और मुक्ति

 

कागभुशुण्डि जी ने गरुड़ जी से कहा कि हे खगनायक! भगवान् श्रीराम की भक्ति सुन्दर चिंतामणि है।यह चिंतामणि जिस भक्त के

हृदय में रहती है वह हृदय

दिन रात विना दीपक के

प्रकाशमान् रहता है।उस

हृदय में ‌मोह, दरिद्रता,

लोभ, काम आदि का 

नामोनिशान नहीं होता।

प्रबल अविद्यारुप अंधकार 

मिट जाता है।उसमणि के विना सुख दुर्लभ है।

जैसे थल के विना जल नहीं रह सकता, उसी तरह 

श्रीराम की भक्ति के विना 

मुक्ति भी नहीं रह सकती।

मुक्ति परमपद अतिकठिन

है, ऐसा संत, पुराण, शास्त्र 

औरवेदकहतेहैं। श्रीराम का भजन करने से विना 

चाहेपरम दुर्लभ मुक्ति 

हठात्आजातीहै। इस 

लिए भक्त भक्ति का आदर

और मुक्ति का निरादर करते हैं।--

अति दुर्लभ कैवल्यपरमपद।

संतपुराननिगमागमबद।।

रामभजतसोइमुकुतिगोसाई।

अन इच्छित आव इबरिआई।

तथा मोच्छसुखसुनुखगराई।

रहिनसक इहरिभगतिबिहाई।।

रामभगतिचिंतामनिसुन्दर।

बस इगरुडजाकेउर अन्तर।।-रामचरितमानस 

                                   उत्तर कांड

                            डॉ.हनुमान प्रसाद चौबे 

                                     गोरखपुर

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