**कोहम? -- मै कौन हूँ..**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

पंचभूत भौतिक पिंजर, जिसे हम 'देह' कहते हैं_ इसकी महिमा और महत्व हम सभी जानते हैं। किंतु 

इस भौतिक देह के भीतर जो एक जीवंत सत्ता है_  हमारा वास्तविक "आत्मस्वरूप"_उसे हम भूले बिसरे रहते हैं। संत सुकरात ने कहा_ "हे इंसान! स्वयं को जानो!" चीन के संत लाओ-त्जू ने कहा_

"Knowing others is

wisdom, knowing yourself is enlightenment.

अर्थात दूसरों की जानकारी होना विवेक है, स्वयं की जानकार 'ज्ञानोदय' है, मोक्षप्रद है।

उपनिषदों में प्रश्न उठाया गया_

"कोहम्"?_ मै कौन हूँ?

प्रत्युत्तर में ऋषियों ने कहा_

"तत् त्वम् असि!_ तुम वही हो अर्थात ब्रह्मस्वरूप आत्मा हो।

अभिप्राय यह कि सभी पूर्ण ज्ञानियों ने एक अलग दिव्य सत्ता को हमारी पहचान घोषित किया और उसे हमारी आत्मा अथवा आत्मस्वरूप बतलाया। यह आत्मा क्या है? कौन है? किस तत्व से बनी है?

यह सिद्ध है कि हमारा आत्मस्वरूप न ही हमारी

दैहिक संरचना है, न ही हमारा जेनेटिक मेकअप है, न ही मस्तिष्क व उसका स्नायु तंत्र है और न ही रसायनिक घोल-मेल है। कठोपनिषद में यमाचार्य नचिकेता को समझाते हैं_

"आत्मनँ रथिनं विद्ध शरीरँ, रथमेव तु।

बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मन: प्रग्रहमेव च।।

इन्द्रियाणि हयानाहुर्विषयाँ स्तेषु गोचरान्।

आत्मेन्द्रियमनोयुक्तं भोक्तेत्याहुर्मनीषिण:।।"

यह शरीर रथ है। इंद्रियाँ इस रथ से जुड़े घोड़े हैं, जो 

विषयों के पथ पर चरते रहते हैं। मन इन घोड़ों की लगाम है। बुद्धि सारथि है। और जो आत्मा है, वह रथ की रथी है, स्वामिनी है।

स्पष्टत: आत्मस्वरूप  तन, मन, बुद्धि से परे है तथा सबका स्वामी है। आगे यमाचार्य कहते हैं_

"एष सर्वेषु भूतेषु गूढोत्मा न प्रकाशते।

दृश्यते त्वग्रयया बुद्धया सूक्ष्मया सूक्ष्मदर्शिभि:।।"

यह आत्मस्वरूप समस्त पंचभूत व चेतन प्राणधारियों में अत्यंत सूक्ष्म रूप से समाहित है। सूक्ष्मदर्शी लोग (जिन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त है) ही अपने अंतर्जगत में उसका दर्शन अथवा साक्षात्कार कर सकते हैं।

अत: आत्मस्वरूप सूक्ष्मातिसूक्ष्म है और हमारे भीतर समाहित है। ब्रह्मज्ञान अथवा आत्मज्ञान द्वारा इस आत्मतत्व का प्रत्यक्ष साक्षात्कार किया जा सकता है।

 **ओम् श्रीआशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

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