**मन कपटी है, छल करता है। हृदय भक्तिमय है।**

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

एक दिन एक साध्वी दीदी को महाराज जी ने अपने पास बुलाया और कहा -मन कपटी है, छल करता है। हदय भक्तिमय है।इसलिए कभी भी जब मन तुम्हें छलने के लिए दुविधा पैदा करे, तो तुम भक्तिमय हदय से काम लेना। अपने हदय से मेरी बातों को याद रखना। मेरी कही हुई हर बात की..... या भविष्य में।महाराज जी पुनः बोले, तुने वह कथा सुनी है? एक सेठ था। उसका अंगुरो का  एक बाग था। उसने अपने सेवक से कहा- जाओ और बाजार से कुछ मजदूरों को ले आओ। उन्हें अगूंर तोड़ने के काम पर लगा दो। सेवक बाजार से कुछ मजदूरों को ले आया  और वे सभी अंगूर तोड़ने लग गए। दोपहर में सेठ  ने देखा कि अभी बहुत अगूंर तोड़ने को बचे हैं। सेठ ने सेवक से कहा कुछ और मजदूरों को ले आओ। शाम के समय सेठ फिर से बाग में पहुंच गया और देखा कि अभी भी काफी अगूंर बचे है।उसने अपने सेवक को फिर से बाजार से  और मजदूर  लाने को कहा। पर जब तक सेवक मजदूर लेकर वापस पहुंचा, तो शाम ढल चुकी थी। बाग में  काम करने का समय समाप्त हो चुका था।जब मजदूरी देने की बारी आई तो सेठ ने सभी मजदूरों को  बराबर पैसे दिए। सुबह आने वाले मजदूरों मे से एक ने शिकायती स्वर में कहा यह आपने क्या किया? सभी को बराबर दिया? हम तो सुबह से काम कर रहे हैं। सेठ ने कहा क्या आपको आपके अधिकार और योग्यता से कम वेतन मिला है? मजदूर ने कहा नहीं। सेठ ने कहा मैं सबको इसलिए बराबर पैसे दे रहा हूँ क्योंकि मेरे पास है। और मेरे में देने की इच्छा भी है।प्रबल इच्छा। कहानी सुनाकर महाराज जी ने कहा ऐसी ही अवस्था गुरु की होती है। वह कृपा करने के लिए बाध्य होता है। वह देकर ही प्रसन्न रहता है। बहुत कुछ है उसके पास। और देने की तीव्र इच्छा भी है। उसे देने न दिया जाए, तो बड़ी मुश्किल होगी। गुरु बस भावना देखता है। जो शिष्य अपने आप को उपलब्ध कराता है, वह उसे सब कुछ दे देना चाहता है।

**ओम् श्री आशुतोषाय नम:**

"श्री रमेश जी"

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