सोचता हूं ।

 

महाराज युधिष्ठिर से कलियुग का फैलना छिपा न रहा। उन्होंने अपने विनयशील पौत्र परीक्षित को पृथ्वी के सम्राट् पद पर

हस्तिनापुर में अभिषिक्त‌ किया। संयमी और श्री कृष्ण के परमभक्त विदुर जी ने भी अपने शरीर को प्रभास क्षेत्र में त्याग दिया। द्रौपदी ने देखा कि अब पांडव लोग निरपेक्ष हो गये हैं

इसलिए वह अनन्य प्रेम से

भगवान् श्रीकृष्ण का ही

चिंतन करके उन्हें प्राप्त हो गयीं।पांडवों के स्वर्गारोहण के

बाद भगवान् श्रीकृष्ण के परम भक्त राजा परीक्षित श्रेष्ठ ब्राह्मणों की शिक्षा के अनुसार पृथ्वी का शासन करने

लगे।---श्रीमद्भागवत

१ .१५ .३८-५०

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