सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
क्या सनातन आध्यात्म आज के युवा को उनकी दुविधाओं का तर्कसंगत समाधान प्रदान कर सकता है? इस प्रश्न का उत्तर है-- हाँ! समाधान के तौर पर आध्यात्म के पास सिर्फ कोरे शब्द नहीं अपितु प्रमाणिक अनुभव हैं। वे अनुभव, जिन्होंने हर स्तर पर, हर दुविधा में अहसास कराया कि अगर आपके आधार में ब्रह्मज्ञान की ध्यान साधना है तो जीवन की कोई भी परिस्थिति आपकी मन:स्थिति पर हावी नहीं हो सकती।
'दूर हो जाता है हर गम, नित निरंतर ध्यान से।
कष्ट हर एक भर है जाता, ज्ञान औषधि पान से।।'
वैज्ञानिकों के अनुसार हमारे मन और चित्त के भटकने का जिम्मेदार DMN (Default Mode Network) है। इसे साधारण संदर्भ में 'Monkey Mind' कहा गया है। जब DMN सक्रिय रहता है, तब हमारे दिमाग में विचार भटकते रहते हैं। कई अध्ययनों से पता चला है कि ध्यान साधना के प्रभाव से DMN पर लगाम लगाना आसान होता है।
बीते वर्षों में शोधकर्ता ने एक शोध किया। इसमें उन्होंने ध्यान के द्वारा सम्बंधों के बीच चिंता, दर्द और अवसाद के लक्षणों को कम करने की क्षमता को जाँचा। शोध में पाया कि ध्यान के प्रभाव का आकार 0.3 यूनिट था। और एक तगड़ी एंटीडिप्रेसेंट (अवसादरोधी) के प्रभाव का आकार भी 0.3 ही होता है। यह ध्यान के प्राकृतिक प्रभाव को सिद्ध करता है। ध्यान जागरूकता बढ़ाने के लिए दिमाग का एक सक्रिय प्रशिक्षण है।
अतः यह शाश्वत महान ब्रह्मज्ञान की साधना ही आज के युवाओं की निजी और व्यवसायिक समस्याओं का समाधान है।हम तो अपने युवक मित्रों को यही कहेंगे कि 'बोझ' और 'बोध' में केवल 'ध' और 'झ' का अंतर है। यदि 'ध' से ध्यान धारण कर लिया, तो 'झ' से "झुंझलाहट" अपने आप हट जाएगी। अब निर्णय आपको लेना है, दुविधाओं में उलझकर ही रहना है या ब्रह्मज्ञान के ध्यान से जुड़कर आत्म विकास करना है। अगर जवाब दूसरा है तो "दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान" आपका आह्वान करता है--- आइए और स्वयं परिवर्तन का अनुभव कीजिये।
**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**
