सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
महापुरुष कहते हैं कि जब हम संसार में आए थे तो बहुत कुछ लेकर आए थे और जब वापिस लौटेंगे तो अपने साथ कुछ लेकर जाएंगे या खाली हाथ यह हम पर निर्भर करता है। जब बच्चे का जन्म होता है तो उसकी मुट्ठी बंद होती है किन्तु जब मृत्यु होती है तो मुट्ठी खुल जाती है ताकि संसार को ज्ञात हो जाए कि जाने वाला संसार से कोई भी वस्तु नहीं लेकर गया।
हर किसी को यह आभास रहता है कि इस संसार से अकेले ही जाना है। संसार का कोई भी प्राणी और कोई वस्तु साथ नहीं जाने वाली है। फिर भी इन वस्तुओं को एकत्रित करता है। और प्रभु के नामरूपी धन को इकट्ठा नहीं करता है जो कि साथ जाना है। क्या यह मूर्खता नहीं है?
यह किसी एक व्यक्ति की कहानी नहीं है अपितु प्रत्येक उस जीव की व्यथा है जो इस संसार में आकर नामरूपी धन को भूल जाता है और उसे प्राप्त करने का प्रयास नहीं करता। इस संसार में कोई भी जीव खाली हाथ नहीं आता। जिस समय एक बच्चा माता के गर्भ में आता है तो उसे चार पदार्थों का ज्ञान होता है। किंतु जन्म के बाद उसे वह भूल जाता है।
तुलसीदास जी रामचरितमानस में कहते हैं---
"भूमि परत भा ढाबर पानी।जनु जीवहि माया लपटानी
अर्थात, जैसे निर्मल जल धरा पर आकर मलिन हो जाता है, उसी प्रकार जीवात्मा को भी यह माया भ्रमित कर देती है।
यह जीव प्रभु से अपने कर्मों के कारण दूर हो जाता है। किंतु पूर्ण सदगुरु की कृपा से उसे पुन: ज्ञान की प्राप्ति होती है। उसके जीवन की यात्रा तब तक समाप्त नहीं होती जब तक वह अपने मूल प्रभु से मिल नहीं जाता। जैसे जल की बूंद वाष्प बनकर सागर से अलग हो जाती है। उसके बाद वह वर्षा की बूंद बनकर पृथ्वी पर फिरसे आती है और तब तक नदी नालों में भटकती रहती है जब तक वह पुनः सागर में नहीं मिल जाती।
जब जब भी इस धरा पर पूर्ण सतगुरु भटके हुए संसार को मार्ग देने के लिए आए, इसी ज्ञान का उपदेश इस संसार में दिया। और यही महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों को कहते हैं कि मैं आपको कोई नई बात बताने नहीं आया। मैं आपको वही बता रहा हूँ जो आप जन्म के समय भूल गए थे।
**ओम् श्रीआशुतोषाय नम:**
"श्री रमेश जी"