सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
प्रायः हम जीवन में घटी दु:खद घटनाओं के कारण विषाद और तनाव से ग्रस्त रहते हैं। हमारे मस्तिष्क में भूतकाल की स्मृतियाँ पनपती रहती हैं। तो इस विषाद और तनाव के चक्रव्यूह से निकलने का क्या उपाय है?
वास्तव में दु:ख-विषाद का मूख्य कारक है-- भूतकाल में जीना। और इस सबके लिए उत्तरदायी है- हमारा मन। जब तक कुछ नवीन नहीं घटता, तब तक हमारा मन भूत काल के विचारों से ही स्वयं को पोषित करता रहता है। यही मन का स्वभाव है। और इसी में छिपा है, समस्या का समाधान।
यदि मन की इसी लत को अवसाद की जगह उत्साह, तनाव की अपेक्षा आनंद का कारण बना लिया जाए तो कैसा रहेगा? कहने का मतलव कि मन को दुखद यादों के स्थान पर सकारात्मकता की खुराक दे दी जाए तो? तो हम स्वत: ही विषाद से बाहर आ सकते हैं।
इसलिए वर्तमान को रचनात्मक दिशा में व्यस्त कर दें। इस नवीन दिशा में बढ़ता हमारा हर कदम नूतन स्मृतियों को जन्म देगा, जो पुरानी यादों को धुँधला कर भविष्य को उज्जवल बनाएंगी।
"तोड़ दो मन में बसी सब श्रृंखलाएं,
छोड़ दो मन में बसी संकीर्णताएं।
एक कदम बढ़ाओ नई सुबह की ओर,
तम छटेगा, रात घटेगी, पीछे छूटेंगी सदाएँ।
सारतः, हमें नकारात्मकता से लड़ने के लिए सकारात्मक परिस्थितियों का सृजन करना होगा। हमें अंधकार से मुख पलटकर नई भोर के सूर्य की ओर उन्मुख होना होगा।
**ओम् श्रीआशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"