सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
काकभुसुण्डि जी (रामायण का एक पात्र और गरुड़ जी के गुरु) पहले एक ब्रह्मज्ञानी गुरु के शिष्य थे। लेकिन वो शिवजी को ज्यादा मानता था।
एक दिन वो शिवलिंग के आगे बैठा हुआ था। तभी वहाँ मन्दिर में गुरुजी प्रवेश किये। अपने "गुरु" को देखकर वो झूठ मुठ का आँख बन्दकर बैठ गया, जिससे की उसको "गुरु जी" को प्रणाम न करना पड़े ।
सद्गुरु का अपमान देखकर शिव जी शिष्य पर क्रोधित हो गए और उसको श्राप दे दिए --"रे धूर्त मानव ! तूने मेरे सामने पूज्य गुरुदेव का अपमान किया हैं । मैं तुम्हें श्राप देता हुँ कि तुम 1000 जन्म मेढक, 1000 जन्म सर्प और 1000 जन्म कौआ बनो !"
यह श्राप सुनकर शिष्य थर थर काँपने लग गया और सद्गुरु जी के चरणों में गिर गया। अपने अपराध की माफी माँगने लग गया । "गुरुजी" से श्राप से बचाने की भीख माँगने लगा।
"गुरु जी" शिष्य पर करुणा वश रीझ गए और शिवजी से श्राप वापिस लेने की प्रार्थना की। लेकिन शिवजी नहीं माने। भगवान शंकर बोले-- "देखिए गुरुवर, इसका अपराध अक्षम्य हैं । इसलिए जन्म तो इसे अवश्य लेने होंगे, लेकिन इसकी स्मृति बनी रहेगी। इसके 3000वे जन्म में कौवे के रूप में जब ये अयोध्या में जन्म लेगा, तब "प्रभु श्री राम" भी आएँगे और इसका नाम काकभुसुण्डि होगा और तब इसका उद्धार होगा!"
और ऐसा ही हुआ।
शिष्यों! इसीलिए शिवजी से पहले गुरुदेव आशुतोष को प्रसन्न कर लें।
**ओम् श्री आशुतोषाय नमः**
"श्री रमेश जी"