*यदि अच्छे बुरे कर्मों की चक्की में पिसने से बचना है तो जीवन की धुरी 'आत्मा' पर स्थित हो जाएं।*
श्री आर सी सिंह जी रिटायर्ड एयरफोर्स ऑफिसरआत्मा का न आदि है, न अंत।आत्मा ही जीवन की धुरी है, केंद्र है।महापुरुष कहते हैं- अपने अस्तित्व की धुरी- 'आत्मा' पर केंद्रित हो जाओ।आत्म तत्त्व या 'स्व' पर स्थित होना सीखो।जब एक व्यक्ति अपनी चेतना आत्म तत्त्व में स्थापित कर लेता है, तो निश्चय ही उसके मन वचन कर्म शुद्ध हो जाते हैं।वह स्वतः ही सकारात्मकता की ओर उन्मुख होने लगता है।यही नहीं, आत्मबोध होने के बाद ही जन्म होता है विवेक का, जो हमें वास्तविक अच्छाई व बुराई में भेद करना सिखाता है।
समाज की सेवा करना, सबका अच्छा करना,किसी का बुरा न सोचना और न ही बुरा करना- ये सब तो स्वयं ही हमारे आचरण में उतर आते हैं, जब हम आत्मानुभूति को प्राप्त करते हैं, जब मन बुद्धि के स्तर से कहीं ऊपर आत्मा में स्थित हो जाते हैं।विश्व भर के अन्य मतों व संतों ने भी यही तथ्य जनमानस के सामने रखा।
भारतीय संत परम्परा के महान संत कबीर जी इस तथ्य को एक रोचक उदाहरण से समझाते हैं--
"चलती चक्की देख के,दिया कबीरा रोए।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोई।।"
अर्थात जब चक्की चलती है, तो उसके दो पाटों के बीच में सब दाने पिसते चले जाते हैं।कोई साबुत नहीं बचता।ऐसे ही संसार में भी अच्छाई बुराई के दो पाटों में सब पिसते रहते हैं।कोई भी नहीं बचता।
परन्तु अगले ही पल कबीर जी इसका समाधान देते हुए कहते हैं--
"चलती चक्की देख के,तू क्यूँ कबीरा रोए।
लगा रहे तू कील में,तो बाल न बांका होए।।"
अर्थात यूँ तो चक्की के दो पाटों में सब दाने पिस जाते हैं.. परंतु जो दाने चक्की के दो पाटों को जोड़ने वाली बीचोबीच स्थित कील पर लग जाते हैं, वे निश्चित ही पिसने से बच जाते हैं।अतः यदि चक्की में पिसने से बचना है, तो चक्की की धुरी में लग जाओ।
कितना मार्के का सूत्र संत कबीर जी दे रहे हैं!यदि अच्छे बुरे कर्मो की चक्की में पिसने से बचना है, तो जीवन की धुरी 'आत्मा' पर स्थित हो जाएं।
*ॐ श्री आशुतोषाय नमः*
RC Singh.7897659218.

अति सुन्दर
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