सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीप्रश्न- महाराज जी, रविंद्रनाथ ठाकुर ने अपनी एक कविता में लिखा है कि- हम सब परमात्मा के पुत्र बनने का संकल्प लें! वहीं हमारे वेद - शास्त्रों में आता है कि हम परमात्मा के ही अंश हैं! अब वेद और शास्त्रों के वचन तो असत्य हो नहीं सकते! और ना ही रविंद्र नाथ ठाकुर जैसे महान कवि से गलत भावाधारित कविता की आशा की जा सकती है!कृपया समझाने की कृपा करें!
उत्तर- इसमें कोई दो राय नहीं कि ईश्वर अंश जीव अविनाशी- इंसान ईश्वर का अंश है! हम सभी परमात्मा के पुत्र हैं! पर विडंबना यह है कि यह सत्य केवल शास्त्र ग्रंथों में कैद होकर रह गया है! इंसान इसे अपने जीवन में चरितार्थ नहीं कर सका है! यही कारण है कि अमृत का पुत्र होते हुए भी वह विष भरा जीवन व्यतीत कर रहा है! सुखों की राशि अंदर होते हुए भी वह दुखों के साए में जी रहा है और भिखारियों जैसे भटक रहा है! उसकी दशा ठीक इस कहानी के राजकुमार जैसी है, जिसे ना अपने साम्राज्य का पता था और ना ही अपने सम्राट पिता का-
एक बार एक राजा के यहां एक शिशु ने जन्म लिया! पर जन्म के कुछ दिन पश्चात ही उसका अपहरण कर लिया गया और उसे नदी में फिकवा दिया गया! नदी में बहते इस शिशु को एक गरीब लकड़हारा अपने घर ले गया! लेकिन कुछ सालों बाद ही वह लकड़हारा भी मृत्यु का ग्रास बन गया! भूख प्यास से व्याकुल वह बालक दर-दर भटकने लगा! एक दिन वह यूं ही भीख मांग रहा था कि राजमंत्री का रथ उसी रास्ते से गुजरा! मंत्री की नजर उस बालक पर पड़ी! जब उसने उसके हाथ पर बने चिन्ह को देखा तो उसने कहा कि आप हमारे राजकुमार हैं! एक पल में ही उस बालक की किस्मत बदल गई! ठीक यही दशा आज प्रत्येक इंसान की है! माया रूपी शत्रु के प्रभाव से वह परमात्मा से विलग हो चुका है! इसलिए वह दुखी ओर अशान्त है! पर जब उसके जीवन में गुरु आते हैं, तब वह उसको उसकी वास्तविकता का बोध कराते हैं! वे उसे ज्ञान प्रदान कर ईश्वर से पुन: जोड़ देते हैं! और तब ही वह सच्चे अर्थों में ईश्वर का पुत्र बन पाता है! इसलिए रवीन्द्र ठाकुर का कथन असत्य नहीं है!
*ओम् श्री आशुतोषाय नमः*
रमेश चन्द्र सिंह 7897659218.
