सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीएक घर में बहुत समय से प्रगाढ़ अंधकार रहता था। एक बार उसकी चौखट पर एक प्रज्वलित दीपक ने दस्तक दी उसकी ऊँची ऊँची लौ प्रकाश बिखेर रही थी। दरवाजे पर आहट सुनकर अंधकार ने बिना द्वार खोले भीतर से ही प्रश्न किया - 'कौन है?' दूसरी ओर से आवाज आई - 'मैं प्रज्वलित दीपक हूँ। द्वार खोलो।' अंधकार भीतर से बोला - 'तुम क्यों आए हो? यह मेरा घर है। इस स्थान का कोना कोना मेरी कालिमा से सराबोर है।' यह सुनकर दीपक ने प्रत्युत्तर दिया - 'क्या तुमने अतिथि देवो भव: नहीं सुना? अरे, मुझ अतिथि के लिए एक बार तो द्वार खोलो।'
अंधकार सोच में पड़ गया। वह विचार करने लगा कि यहाँ तो इतने वर्षों से मेरा साम्राज्य कायम है। एक पल के लिए मैने द्वार खोल भी दिया, तो इस दीपक की नन्ही सी लौ मेरी प्रगाढ़ कालिमा का भला क्या बिगाड़ पाएगी? ऐसा सोचते हुए मद में चूर अंधकार ने द्वार खोल दिए। जैसे ही दीपक का प्रकाश घर के अंदर पहुँचा, तो वर्षों से व्याप्त अंधकार का अस्तित्व विलीन हो गया। '
''इसी प्रकार बंधु... चाहे आपके मन में कितना भी पुराना व प्रगाढ़ अंधकार क्यों न हो, ज्ञान के प्रकाश को भीतर आने दो। हृदय के द्वार खोलो। सारी कालिमा दूर हो जाएगी।"
ज्ञान का एक ही मार्ग है, जिसके माध्यम से अंतर्जगत में प्रकाश का दर्शन होता है। हर समय में ज्ञानी साधकों ने दिव्य दृष्टि प्राप्त होने पर प्रकाश दर्शन का अनुभव पाया।
प्रश्न उठता है कि यह दिव्य दृष्टि कैसे प्राप्त होती है? हर युग में इन सब प्रश्नों का एक ही समाधान रहा- "सद्गुरु।" जी हाँ, सद्गुरु ही वास्तविक भक्ति के आधार होते हैं। ईश्वर के प्रकाश का साक्षात्कार कराने में वे समर्थ होते हैं।
संत सहजोबाई ने तो उन्मुक्त कंठ से बताया- "परमात्मा ने तो मुझसे स्वयं को छिपाया। किंतु गुरु ने यह भेद प्रकट कर दिया। मेरे भीतर ज्ञान दीपक प्रज्वलित कर ईश्वर का दर्शन करा दिया। यदि मुझे गुरु या हरि में से किसी एक का चुनाव करना पड़े, तो मैं गुरुवर को ही चुनूँगी। क्योंकि पूर्ण गुरु मिलेंगे, तो ईश्वर स्वत: ही मिल जाएँगे।"
नि:संदेह, जीवन में ऐसी कृपा करने वाले गुरुवर का स्थान तो ईश्वर से भी उच्च है।
*ओम् श्री आशुतोषाय नम :*
रमेश चन्द्र सिंह 7897659218.
