*भाग्यशाली होते हैं वे लोग जिनकी आंखें गुरु के लिए रोया करती हैं।*

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                                श्री आर सी सिंह जी 

एक बार की बात है! योगानंद परमहंस गुरु आश्रम के एक कोने में बिलकुल मुरझाए से बैठे थे!  उनका गुरु भाई उन तक दौड़ता हुआ आया और पूछा क्या हुआ?बहुत  दुखी परेशान लग रहे हो!  योगानंद जी ने कहा हां बात ही कुछ ऐसी है!  क्या करूं? तुम्हें बताने से कुछ नहीं होगा!तो किसी और गुरु भाई को बुला दूं?  नहीं तुममें से कोई भी आज मेरी दुविधा हल नहीं कर सकता!  तो फिर वही करो जो हमेशा करते हो!अपनी सारी परेशानी, सारी तकलीफ, सारा संकट लेकर गुरुदेव के पास चले जाओ!  योगानंद जी एकदम से बोले कैसी बात करता है? गुरु के पास कैसे चला जाऊं?  अरे जिसकी शिकायत लगानी हो, क्या कभी उसी के पास जाकर उससे उसकी शिकायत लगाई जाती है? मतलब?योगानंद जी बुझे स्वर में बोले गुरूदेव ही तो मेरे दुख के कारण हैं!  मुझे ठीक से दर्शन नहीं दे रहे!ना मुझे अपने कक्ष में बिठाकर कुछ सिखा रहे, न समझा रहे! ना मेरी ओर प्यार से देख ही रहे हैं! गुरु भाई ने कहा- यदि ऐसा है तो आज गुरूदेव की शिकायत भगवान से लगा दो! भगवान् से? क्या तू इतना भी नहीं जानता कि भगवान और गुरु तो मिले हुए हैं!भगवान तो वही करते हैं जो गुरुदेव कहते हैं!गुरूदेव जिसके हृदय में भगवान को प्रकट होने को कह देते हैं,  उसके हृदय में वे प्रकट हो जाते हैं! तो भगवान गुरु से बड़े कहाँ हुए?  फिर भगवान से गुरु की शिकायत लगाने का क्या फायदा?वह गुरु भाई बोला-  अब किससे कहा जाए?योगानंद जी गहरी सोच में पड़ गए और बोले मुझे समझ आ गया!  बाहर वाले गुरूदेव की शिकायत अंदर  वाले गुरुदेव से करता हूं!योगानंद जी साधना में बैठ गए!  आंखें बंद करते ही उन्हेंं सिंहासन पर अपने गुरुदेव बैठे दिखाई दिए!  उनसे बोले क्या हो गया है गुरुदेव?  आप मुझसे बात क्यों नहीं करते?  मेरी कोई पुकार आप तक क्यों नहीं पहुंच रही?  खूब रोए, खूब उलाहने दिए!  तब उनके गुरुदेव ने प्रेम से कहा योगानंद, आज तक मैंने तुझे अपने सानिध्य और प्रेम का आंनद दिया है!आज तुझे अपनी  विरह का परमानंद चखा रहा हूं!

     ठीक ऐसे ही जबसे दिव्य गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी समाधि में गए हैं, हमें  समझ आ गया है कि गुरु का वियोग क्या होता है!गुरु की विरह क्या होती है?  माया जिन हृदयों को पत्थरनुमा कर देती है, महाराज जी ने उन्हें भी पिघला कर दिखाया है!यह बहुत बड़ा उपहार है!गुरु के लिए रोना कोई शर्म की बात नहीं है!भाग्यशाली होते हैं वे लोग जिनकी आंखें गुरु के लिए रोया करती हैं!  वह दिन जरूर आएगा, जिस दिन श्री गुरु महाराज जी समाधि से लौट आऐंगे ओर हम सभी अपनी प्रेम भावना की अभिव्यक्ति उनके श्री चरणों में करेंगे!

*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

'श्री रमेश जी' 7897659218.

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