मन किसी रुचिकर भाव में लीन हो जाए तो बाहरी कष्ट महसूस नहीं होंगे।

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                               श्री आर सी सिंह जी 

एक बार की बात है! एक दिन सम्राट अकबर लंबी यात्रा पर निकला! इस यात्रा में कुछ दरबारी भी उसके संग थे! कुछ ही समय में राजा को थकान हो गई! उसने साथ चल रहे दरबारियों से पूछा- क्या कोई मेरे लिए यह मार्ग छोटा कर सकता है?उसी समय बीरबल ने कहा- बादशाह सलामत!आपके लिए मैं यह मार्ग छोटा कर सकता हूं! सभी दरबारी हैरान हो गए! क्योंकि वे सभी जानते थे कि इस पर्वतीय भूभाग पर इसके इलावा अन्य कोई मार्ग नहीं  है! पर बीरबल बोला महाराज! मैं कह रहा हूं न मैं अवश्य  इस मार्ग को आपके लिए छोटा कर दूंगा! तब राजा की सवारी के साथ चलते चलते बीरबल ने एक रुचिकर कहानी सुनानी शुरू कर दी! कहानी अत्यंत रोचक थी! इस लिए अकबर उसे सुनने में मग्न हो गया! जब तक वह कुछ समझ पाता, पूरा सफर तय हो गया था!बीरबल बोला हे सम्राट!मैंने आपकी आज्ञा पुरी कर दी है! आपने  मुझे मार्ग छोटा करने को कहा था! सो मैंने कर दिखाया!दरअसल मार्ग तो क्या छोटा होना था, बीरबल ने अपनी  बुद्धिमता से सफर को मनोरंजक बनाकर यात्रा को छोटा बना दिया था! क्योंकि यात्रा की थकान और बोझिलता तन से पहले मन को महसूस होती है! कहने का भाव कि अगर मन ही किसी रुचिकर भाव में लीन हो जाए, तो बाहरी परिस्थितियों के कष्ट महसूस नहीं होंगे! ठीक ऐसे  आज हमें भी अपना सफर बहुत लंबा और बोझिल प्रतीत हो रहा है!कर्तव्य कर्म का मार्ग चुनौतिपूर्ण, कष्टकर और दीर्घ लगता है! लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ही हम थक जाते हैं! ऐसे में बीरबल की यह तकनीक बेहतरीन समाधान है!सारी दुष्करता, सारे दुर्भाव हमारा मन महसूस कर रहा है! इसलिए इस मन को ही किसी उच्च और आंनदमय भाव में लीन करना होगा! यह आनंद रस का सरस झरना निरंतर हमारे आत्म स्वरूप से झरता है! यही सनातन युक्ति है! इसी के द्वारा चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों और कर्तव्यों के रास्ते को हंसते खेलते हुए और पूरे मनोयोग के साथ पार किया जा सकता है! और यह केवल ब्रह्मज्ञान द्वारा ही संभव है! जिसके लिए हमें श्रीकृष्ण समान अध्यात्मिक सद्गुरु का हाथ थामना होगा!

*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

'श्री रमेश जी'

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