सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीइन दिनों ब्रह्मचारी कुलदानंद बड़े मुश्किल दौर से गुजर रहे थे। वैसे तो उन्होंने सत्यम शिवम सुंदरम की साधना के लिए जीवन लगाया था।पर आजकल उनका मन धनम्-अहम् की ओर खिचं रहा था। विकारों का वेग अंतःकरण में उद्वेग मचाए हुए था।ब्रह्मचारी कुलदानदं भी इस विवश स्थिति में अपने गुरूजी के चरणों में पहुंचे। मन में भय था कि कहीं गुरु नाराज ही ना हो जाए। वे अपने गुरुदेव के चरणों से लिपट गए और खूब रोये। केवल एक ही गुहार लगा रहे थे कि गुरुवर मुझे इन विकारों, वासनाओं के महाअसुरों से बचाओ। आप ही एकमात्र सहायी हो।गुरुदेव तनिक गंभीर हो गए। फिर घोषणा जैसे बुलंद स्वर में बोले- ध्यान से सुन कुलदानंद। मैं तुझे सृष्टि का एक अटल नियम बताता हूं और उन्होंने अपनी उंगली को आकाश की ओर उठाया और कहा- याद रखना, यदि इस अंतरिक्ष की छतरी तले कोई भी ऐसा शिष्य है जो अपने विकारों या वासनाओं या परिस्थितियों के हाथों मजबूर है तो इसके केवल दो ही कारण हो सकते हैं, या तो उसका गुरु अपूर्ण है या फिर शिष्य का शिष्यत्व अधूरा है। या तो गुरु में कमी है, वह केवल नाम का गुरु है या शिष्य के चलने में कमी है। गुरु ने जो आज्ञाएं निर्देशित की हैं, शिष्य उन्हें इमानदारी से नहीं निभा रहा। तुम बताओ कुलदानंद, तुम्हारी विवशता का इन दोनों में से क्या कारण है?कुलदानंद की आंखों से आंसू बहने लगे। वे दोनों हाथों को जोड़कर बोले- गुरुवर। आपकी पूर्णता पर संदेह करना ऐसा हैं, जैसे अपनी मां को कहना कि तूने मुझे जन्म नहीं दिया। जब आपने मुझे ब्रह्मज्ञान की दीक्षा दी थी, तब मेरे अंदर के विराट ब्रह्मांड ने आपकी पूर्णता का खुला प्रमाण मुझे दिया था। कमी तो मेरी ओर से ही रह गई है।आज्ञाओं के पालन में साधना करने में मुझसे ही चूक हो गई। क्षमा करें गुरुवर अब ऐसा न होगा!गुरुवर बोले तब फिर वासनाओं का प्रकोप भी ना होगा। कुलदानंद बोला मैं अभी इसी क्षण से साधना सेवा सुमिरन, गुरु दर्शन में जुट जाउंगा।उनकी साधना रंग लाई।वासनाओं के काले साए छटते गए। जिन जिन मायावी आकर्षणों में उनकी बुद्धि अटकी थी, उन सब का स्थान गुरुवर ने ले लिया। सच ही कहते हैं- गुरु ही सत्य। गुरु ही शिव। गुरु ही सौंदर्य। सब कुछ गुरु ही तो हैं!
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
'श्री रमेश जी'
