सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीबच्चों को पालने-पोसने में मां-बाप अपना संपूर्ण जीवन झोंक देते हैं!लेकिन बड़े होने पर वही बच्चे अपने बूढ़े माता-पिता को कहां झोंक देते हैं! अकेलेपन की मार सहने के लिए वृद्धाश्रमों में! दर-दर की ठोकरें खाने के लिए रेलवे स्टेशनों पर! पतन की सारी हदें तो तब पार हो जाती हैं, जब वही संतानें छुटकारा पाने के लिए मां बाप को मार देने तक से परहेज नहीं करते! आज वृद्घावस्था अभिशाप बन गई है!
वैदिक काल में दीक्षांत समारोह के समय युवाओं को अपने माता-पिता के आदर के संदर्भ में शिक्षा दी जाती थी! इसका वर्णन तैत्तरीय उपनिषद में मिलता है- मातृदेवो भव, पितृदेवो भव! चाणक्य कहते हैं- वृद्ध सेवा से सत्य ज्ञान प्राप्त होता है!विदुर नीति के पांचवें अध्याय में आता है- जो अपने बड़े बुजुर्गों का सम्मान करता है, ऐसे व्यक्ति को निश्चित ही स्वर्ग मिलता है! इसके विपरीत आचरण करने वालों को घोर नरक की यातना सहनी पड़ती है!
पदम पुराण और स्कंद पुराण में वर्णन आता है!पुण्डलिक के पिता जानुदेव और माता सत्यवती थी! बचपन से ही उसने कभी उनकी सेवा नहीं की! विवाह के पश्चात तो उसने उनके साथ बुरा व्यवहार करना शुरू कर दिया! उसके अत्याचारों से परेशान होकर एक दिन उसके माता-पिता ने तीर्थ यात्रा पर जाने का निर्णय किया! कहीं वे तीर्थ के नाम पर भाग न जाए और मुफ्त के नौकर हाथ से न चले जाए यह सोचकर वह भी अपनी पत्नी के साथ उनके साथ चल दिया! काफी लंबा रास्ता तय करने के बाद, उसके माता-पिता ने कुछ समय के लिए आराम करना चाहा! वहां पर कुकुट मुनि का आश्रम था! सब वहीं रुक गए!
उस रात पुण्डलिक को किसी कारण से नींद नहीं आई! उसने देखा कुछ देवियां ऋषि की कुटिया में प्रवेश कर गई! परंतु उनके वस्त्र बहुत मैले थे!कुछ पलों के बाद जब वे बाहर आई, तो वे साफ वस्त्र धारण किए हुए थीं!उनसे उसने पूछा आप सब कौन हैं? उन्होंने बताया हम गंगा, यमुना तथा अन्य देवियां हैं, जिनमें डुबकी लगाकर लोग अपने पाप कर्म धोते हैं! लेकिन जब तुम जैसे महापापी- जो अपने माता-पिता को कष्ट देते हैं- हमारे जल में गोता लगाने आते हैं, तब तुम्हारे पापों की कालिमा हमें मलिन कर देती है। उससे छुटकारा पाने के लिए हम ज्ञानी ऋषि मुनियों के पावन सानिध्य में आशीष लेने आती हैं! इन शब्दों को सुनकर पुण्डलिक को जोरदार धक्का लगा!माता-पिता की अवज्ञा करके वह कितने पापों का भागी बना है यह सोचकर वह भीतर तक कांप गया! वह तुरंत अपने माता-पिता के पास गया और उनके चरणों में गिरकर माफी मांगी!
कन्फूशियस कहते हैं- भोजन तो हम जानवरों को भी खिलाते हैं! उन्हें पालते हैं, उनकी देखरेख करते हैं! इस लिए वृद्ध माता-पिता को भोजन देना, उन्हें आश्रय देना ही पर्याप्त नहीं है! इंसानियत तो तब है जब यही कार्य उन्हें पूरी इज्जत और मान सम्मान देते हुए किया जाए! हमारे महापुरुष कहते हैं- यह तो तभी संभव है जब व्यक्ति धर्म को धारण कर ले! यहां धर्म का मतलब किसी बाहरी रीति रिवाज से नहीं है! धर्म का असली अर्थ है धारण करना, उस ईश्वर को, उस आत्मतत्त्व को जो संपूर्ण गुणों का स्रोत है! आज इंसान उस वास्तविक धर्म से विमुख हो गया है, इसलिए अपने गुणों को भी खो बैठा है!तभी तो उसकी सोई हुई आत्मा उसे कुछ नहीं कहती जब वह अपने ही वृद्ध माता-पिता पर जुल्म करता है, उनका अपमान करने का जघन्य अपराध करता है! परंतु इस अपराध को करने के लिये उसके हाथ और कदम कभी नहीं उठेंगे, जब वह आत्मिक स्तर पर जागृत हो जाएगा! तब वृद्धों के लिए किसी वृद्धाश्रम की कोई जरूरत नहीं रहेगी!यह तभी हो पाएगा जब हम किसी ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु की शरण में जाएंगे!
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
'श्री रमेश जी'
