*भगवान का चिंतन होने मात्र से मन सतयुग में आ जाता है।*

सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                              श्री आर सी सिंह जी 

मनुष्य के एक तरफ संसार है और दूसरी ओर परमात्मा। आप संसार के जितना जितना करीब जाएंगे, संसारी लोगों की संकीर्णता का पता चलता जाता है। दूसरी ओर हम परमात्मा के जितना जितना करीब जाते हैं, परमात्मा की विशालता का एहसास होने लगता है। परमात्मा के करीब जाने का उपाय ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करना है। फिर भी सामान्य मनुष्य अक्सर गलत दिशा का चुनाव कर लेता है। सचमुच यह चिंतन का विषय है । 

     भौतिक प्रकृति की 84 लाख योनियों में केवल मनुष्य द्वारा किए गए पाप पुण्य कर्म ही लिखे जाते हैं। प्रकृति परमात्मा द्वारा बनाई गई एक अदालत है, जो सभी मनुष्यों द्वारा किए गए कर्मों विकर्मों का पूरा लेखा जोखा रखती है। और एक समय अंतराल के बाद दुख सुख रूपी फल प्रदान करती है। जबकि दूसरी ओर परमात्मा सदा मिले हुए दुखों को सहने की शक्ति और इन दुखों से बाहर निकलने का अवसर व स्वयं को जानने पाने का आध्यात्मिक ज्ञान भी देते हैं। 

     प्रकृति के तीन गुण सतोगुण, रजोगुण व तमोगुण हैं। भगवान का चिंतन होने मात्र से मन सतयुग में आ जाता है। सतोगुण+रजोगुण का चिंतन मन को त्रेतायुग में। रजोगुण+तमोगुण का चिंतन द्वापर युग में। और केवल तमोगुण का चिंतन हमारे तन और मन को कलयुग में ले आता है। हम सभी मनुष्यों की दिनचर्या में कौन सा गुण मौजूद रहता है, आप स्वयं ही जानते हैं। अगर हमें मानव जीवन को सार्थक करना है, तो हमें ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निरंतर ध्यान साधना व सत्संग करते रहना चाहिए। जिससे हमारा मानव जीवन सार्थक हो जाए। 

*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

'श्री रमेश जी'

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