सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीप्रकृति में असंख्य जीव हैं और सभी जीवों को अपने जीवन में सुख-दुख मनुष्य योनि में ही किए गए कर्मों के आधार पर मिलते हैं। केवल सुखों को भोगने व चिंतन करते रहने से परमात्मा की स्मृति क्रमशः कमजोर होने लगती है। जबकि प्रत्येक क्षण मृत्यु की स्मृति बने रहने से हमारी भौतिक सुखों को भोगने की इच्छाएं कमजोर होती हैं और परमात्मा के प्रति भावनाएं मजबूत होने लगती हैं जो सत्संग करने में मदद करती है। अर्थात ध्यान साधना व सत्संग में श्रद्धा मजबूत होने लगती है। वास्तव में मनुष्य योनि ध्यान साधना व सत्संग करने के लिए ही मिली है। अन्य किसी भी योनि में यह कर पाना संभव ही नहीं है। ध्यान साधना व सत्संग करते रहने से ही हमारा कल्याण होता है। इसलिए मिले हुए मनुष्य जन्म को यूं ही भोगों में नहीं गंवाना चाहिए। एक भोगी मनुष्य अपने जीवन को स्थायी मानता है और मृत्यु का चिंतन ही नहीं करता, जिसके फलस्वरूप उसे परमात्मा की स्मृति भी नहीं रहती।
प्रकृति के सभी जीव सुख प्राप्ति के लिए ही कर्म करते हैं। सभी मनुष्यों को कर्म करने की प्रकृति द्वारा स्वतंत्रता प्रदान की गई है। इसलिए किए गए कर्मों का सुख दुख रूपी फल मनुष्य व अन्य योनियों में मिलता है। लेकिन सभी शुभ कर्म हमें परमात्मा के नजदीक ले जाते हैं। और सभी बुरे कर्म परमात्मा से दूर ही नहीं करते, अपितु प्रकृति रूपी अदालत में भेजकर दुख रूपी दण्ड भी दिलवाते हैं। अब हम स्वयं ही अपना अपना फैसला करें कि हम सब हर रोज किस दिशा में जा रहे हैं?
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*
"श्री रमेश जी"
