*जो व्यक्ति ईश्वर को जान लेता है वह तत्ववित्त कहलाता है।*

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                                श्री आर सी सिंह जी 

आशुतोष महाराज जी कहते हैं कि जो परम सत्य को जान जाता है वह कभी भी गलत संगति में नहीं पड़ता। वह अच्छे से जान जाता है कि वह भगवान का अंश है और उसका स्थान इस भौतिक सृष्टि में नहीं होना चाहिए। वह अपने वास्तविक स्वरूप को भगवान के अंश के रूप में जानता है जो सत, चित्त और आनंद है।  और उसे यह एहसास होता रहता है कि वह  किसी कारण से देहात्मबुद्धि में फंस चुका है। उसे अपने अस्तित्व की शुद्ध अवस्था में  सारे कार्य भगवान की सेवा में नियोजित करने चाहिए। इसलिए वह अपने आप को भगवान की सेवा के कार्यों में लगाता है और भौतिक इंद्रियों के कार्यों के प्रति स्वभावत: अनासक्त हो जाता है। क्योंकि वह जान जाता है कि यह परिस्थिति जन्य तथा अस्थाई है। वह जानता है कि उसके जीवन की भौतिक दशा भगवान के नियंत्रण में है। इसलिए वह सभी प्रकार के भौतिक बंधनों से कभी भी विचलित नहीं होता। क्योंकि वह इन्हें भगवत्कृपा मानता है। श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार भी जो व्यक्ति परम सत्य को ब्रह्म, परमात्मा तथा श्री भगवान- इन तीन विभिन्न रूपों में जानता है वह तत्ववित्त कहलाता है। क्योंकि वह परमेश्वर के साथ अपने वास्तविक संबंध को भी जानता है।

*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

"श्री रमेश जी"

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