*अतिरिक्त धन ही एक दिन जहर बन जाता है।*

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                              श्री आर सी सिंह जी 

भौतिक जगत के 84 लाख योनियों के सभी असंख्य जीवों के 3 शरीर (स्थूल, सूक्ष्म व कारण) होते हैं। स्थूल शरीर यानि तन के रिस्ते जन्म के साथ ही बनते हैं और मृत्यु होने के साथ ही समाप्त भी हो जाते हैं। लेकिन मन यानि सूक्ष्म शरीर के रिश्ते मरने के बाद भी बने रहने की संभावनाएँ अधिक रहती हैं। जबकि आत्मा के रिश्ते सदा ही बने रहते हैं। क्योंकि आत्मा परमात्मा का ही अंश माना गया है, इसलिए रिस्ता टूटने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। हाँ भोगों में लिप्त मनुष्य परमात्मा को भूल तो सकता है, जो कि आज लोगों में प्रायः देखने में आ रहा है, लेकिन फिर भी रिस्ता तो समाप्त नहीं किया जा सकता। इसलिए अपने जीवन में स्थूल शरीर को 1% और आत्मा /परमात्मा को 100%महत्व देना चाहिए। यानि अध्यात्म से जुड़कर ध्यान साधना व सत्संग करते रहना चाहिए। 

     सभी मनुष्यों के स्थूल शरीरों की कुछ आवश्यकताएँ होती हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन की जरूरत पड़ती है। लेकिन धन को अधिक बटोरते रहने से, इकट्ठा किया हुआ धन ही एक दिन जहर बन जाता है। इसलिए जीवन में मिले हुए अतिरिक्त धन को जरुरतमंद लोगों में बांटते रहना चाहिए। ऐसा निरंतर करते रहने से स्वयं का धन भी प्रसाद बन जाता है। यानि प्रकृति और भगवान का आशीर्वाद मिलने से इस प्रसाद द्वारा हमारे स्वयं का कल्याण होता है। 

*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

"श्री रमेश जी"

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