*यह संपूर्ण संसार विचारों की समष्टि मात्र है।*

सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                              श्री आर सी सिंह जी 

किसी ने बिल्कुल सही कहा है-  जैसा ख्याल, वैसा हाल!  मनुष्य के मानस पटल पर विचारों का असर ठीक वैसा ही पड़ता है, जैसे दिए गए निर्देशों का कम्प्यूटर पर!कम्प्यूटर को जो निर्देश दिए जाते हैं, वह उनके अनुसार ही कार्य करता है! इसी प्रकार मन को भी जैसे विचार मिलते हैं, वह वैसा ही कर्म करता है।         

      जहां सदविचार हमें सद्कर्मों की ओर प्रेरित करते हैं, वहीं दुर्विचार दुष्कर्मों की नींव डाल देते हैं!  कहने का मतलब है कि विचार ही हमारे कर्मों के रूप में अभिव्यक्त होकर हमारे आचरण और व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। या ऐसा भी कह सकते हैं कि हमारे कर्म और भावनाएं हमारे विचारों का प्रतिबिम्ब होती हैं! 

त्रेता काल की घटना है!एक रात भगवान राम अपने वानर भक्तों के साथ बैठे हुए थे! अचानक चांद की ओर देखते हुए बोले-  अच्छा बताओ, चांद में यह काला दाग कैसा है? प्रश्न सुनते ही सुग्रीव ने कहा प्रभु, चन्द्रमा में पृथ्वी की छाया दिखाई दे रही है!इतने में दूसरा उत्तर आया चन्द्रमा को राहु ने मारा था! यह वही काला दाग उसके हृदय पर  पड़ा है!किसी ने कहा उसने विष को अपने हृदय में स्थान दे रखा है! जब सब अपना अपना तर्क दे चुके, तब श्रीराम ने हनुमान जी की ओर देखा और उनका उत्तर जानना चाहा!  भक्त हनुमान तो प्रभु की दृष्टि का स्पर्श पाते ही भाव-विभोर हो उठे! बोले प्रभु, चन्द्रमा तो आपका प्रिय दास है!उसके हृदय में आपकी सुन्दर श्याम मूर्ति बसी है!यह वही श्यामलता झलक रही है!                                 

       अत: जिसके जैसे विचार थे, उसने उसी प्रकार देखा और उत्तर दिया!  हनुमान जी का अन्त:करण सेवा और प्रेम के भावों से परिपूर्ण था, इसलिए उन्हें चन्द्रमा में भी भगवान का स्वरूप ही नजर आया! 

   पश्चिम के एक विचारक हुए हैं, ब्रेकले! वे कहते हैं यह सम्पूर्ण संसार विचारों की समष्टि मात्र है!इसलिए हे मनुष्य, तू क्यों इस संसार को सत्य समझता है?  यह बाहर दिखने वाला संसार तेरे अंतर का ही प्रतिबिंब है!यह तेरे ही विचारों की उत्पत्ति है!  कहने का मतलब है कि सब कुछ विचारों का ही खेल है! पर, क्योंकि यह मन बहुत चंचल है, इसलिए इस पर नियंत्रण पाने के लिए किसी ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर निंरतर साधना का अभ्यास बहुत आवश्यक है!

*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*

"श्री रमेश जी"

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