सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।
श्री आर सी सिंह जीएक बार किसी देश के महाराजा अपनी प्रजा का हाल-चाल पूछने के लिए गांवो में घूम रहे थे। घूमते-घूमते उनके कुर्ते का एक बटन टूट गया।
उन्होंने अपने मंत्री को कहा कि, पता करो इस गांव में कौन सा दर्जी (टेलर) है, जो मेरे बटन को लगा दें..मंत्री ने पता किया, उस गांव में सिर्फ एक ही दर्जी था, जो कपडे़ सिलने का काम किया करता था, उसको राजा के सामने लाया गया।
राजा ने उससे पूछा...क्या तुम मेरे कुर्ते का बटन सी सकते हो? दर्जी ने कहा, जी हाँ हुजूर..यह कोई मुश्किल काम थोड़े ही है। उसने मंत्री से बटन लिया और सुई-धागे से राजा के कुर्ते का बटन सिल दिया।
टूटा हुआ बटन राजा के पास था, इसलिए दर्जी को महज अपने धागे का इस्तेमाल करना था। कार्य होने पश्चात राजा ने दर्जी से पूछा कि कितने पैसे दूँ? उसने कहा, महाराज रहने दीजिए, छोटा सा काम था। दर्जी ने सोचा कि बटन भी राजा के पास था, मैंने तो सिर्फ धागा ही लगाया है। राजा ने फिर से दर्जी को कहा, बोलो कितना रुपया दूँ ? दर्जी ने सोचा कि एक रुपया मांग ही लेता हूँ...
फिर उसने मन में सोचा कि कहीं राजा यह न सोचे कि यह बटन टांकने के बदले में मुझसे एक रुपया ले रहा है, तो गांव वालों से कितना लेता होगा। उस जमाने में एक रुपये की कीमत भी बहुत होती थी। दर्जी ने राजा से कहा महाराज जो भी आपको उचित लगे, वह दे दीजिए..अब वे थे तो महाराजा ही, उन्होंने अपने हिसाब से देना था।कहीं देने में उनकी पोजीशन खराब न हो जाए, उन्होंने अपने मंत्री से कहा इस दर्जी को दो गांव दे दो, यह हमारा हुक्म है। कहां दर्जी सिर्फ एक रुपये की मांग कर रहा था और कहां राजा ने उसको दो गांव दे दिए।
इस काहानी का भावार्थ यह है कि, जब हम, प्रभु पर सब कुछ छोड़ देते हैं, तो वह अपने हिसाब से देते हैं। हम सिर्फ मांगने में कमी कर जाते हैं, देने वाला तो पता नहीं क्या देना चाहता है?
इसलिये अपना संपूर्ण आस्था और बिश्वास सर्वशक्तिमान, परमात्मा के उपर ही हमेशा बनाये रखें। ईश्वर की कृपा व आशीर्वाद हमारे लिये सदैव सागर के जैसे ही, विशाल होता है।
शायद इसीलिए कहा गया है कि
"जेहिं विधिनाथ होइ हित मोरा। करहुं सो वेगि दास मैं तोरा।।"
*ओम् श्री आशुतोषाय नम:*