▪️देवशक्तियों का विसर्जन, महापूर्णाहुति, भंडारे के साथ भागवत कथा का समापन।

▪️नकली बहुत दिनों तक टिकता नहीं है,नकली को बहुत देर तक  समाज में ख्याति नहीं मिलती। 

▪️मनुष्य के जीवन में कोई एक सच्चा और अच्छा मित्र मिल जाए तो यह जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि है। 

▪️सत्संग रूपी सरिता में स्नान करने से दुर्गुणों का विनाश हो जाता है - ब्रह्मचारी कौशिक चैतन्य जी महाराज। 

 

             पूर्णाहुति का समापन कार्यक्रम

बाराबंकी 10 मार्च। ब्लाक सिद्धौर की ग्राम सभा बीबीपुर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा का उनके लिए मुसीबत थी कि भारत में आकर के यहां किया है तो यह सिद्ध हो जाता था कि यहां टेररिस्ट कैंप था क्योंकिइतनेर ढंग से समापन हो गया। उक्त आयोजन ने बीबीपुर ग्राम समेत पूरे क्षेत्र में एक अमिट छाप छोड़ दिया। समापन की पूर्व संध्या पर प्रवचन पंडाल में व्यास पीठ एवं श्रीमद भागवत ग्रंथ की आरती करके मुख्य यजमान संजय सोनी एवं पुष्पा सोनी द्वारा सपत्नीक पूजन अर्चन संपन्न किया गया।इस अवसर पर चिन्मय मिशन से पधारे ब्रह्मचारी स्वामी कौशिक चैतन्य जी महाराज ने कहा कि‘ मनुष्य जीवन में कोई एक सच्चा और अच्छा मित्र मिल जाए तो जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि है', भगवान राम ने सुग्रीव को  अपना मित्र बनाया था, प्रभु राम ने सुग्रीव की मुसीबत को दूर करने का वचन भी लिया था,“ सखा सोच त्यागहुँ बल मोरे " की भांति श्री कृष्ण के सच्चे बचपन के मित्र विप्र सुदामा थे। मित्रता के बीच धन,वैभव का अहंकार मन में नहीं आना चाहिए। सुखदेव जी महाराज परीक्षित से विप्र सुदामा की कथा सुनाते हुए कहते हैं कि सुदामा के मित्र कृष्ण द्वारकाधीश बन गए थे । विपन्नता के कारण सुदामा काफी गरीब थे। एक समय की बात है कि सुदामा गरीबी के दिनों से गुजर रहे थे ,तीन दिनों तक भूखे प्यासे अपनी कुटिया में बैठे थे, खाने के लिए अन्न भी नहीं था । सुदामा की पत्नी सुशीला ने द्वारिकाधीश से मिलने के लिए कहा। सुदामा ने कहा - सुशीला मित्र के पास खाली हाथ नहीं जाना चाहिए ।सुशीला बेबस थी,निराश और उदास थी। वह तीन घरों में एक-एक मुट्ठी चावल भीख मांग कर इकट्ठा करके पोटली में सुदामा को दे दिया । 

उस पोटली को लेकर सुदामा अपने बचपन के सखा कृष्ण से मिलने के लिए द्वारिका पुरी गेट पर पहुंच गए ।द्वारपालो से संदेश भेजा कि कृष्ण से कह दो उनके बचपन का मित्र सुदामा मिलने आया है। उस समय माता रुक्मणी के साथ द्वारिका में कृष्ण बैठे थे।तुरंत दौड़ पड़े। सुदामा जी को गले लगाते हुए हाथ पकड़ कर अपने आसन पर बैठाकर आदर सत्कार किया, अपने अश्रुओं के जल से सुदामा के चरण धोए थे । ‘देखि सुदामा की दीन दशा करुणा करके,करुणानिधि रोए पानी परात को हाथ छुयो नहीं ,नैनन के जल से पग धोये,भगवान जब देते हैं तो छप्पर फाड़ कर देते हैं। कृष्ण ने मित्रवत भाव से सुदामा से कुछ खाने के लिए मांगा, उस समय सुदामा भाव विह्वल  हो गए ,सोचने लगे- कहां मैं गरीब ब्राह्मण और मेरे मित्र कृष्ण द्वारिका पुरी के राजा है । कृष्ण अंतर्यामी थे,उन्होंने सुदामा की पोटली को ले लिया ,उसमें से दो मुट्ठिया चावल खाकर दो लोकों को दे दिया, तीसरी मुट्ठी जैसे ही खाने लगे ,माता रुक्मणी ने हाथ पकड़ लिया कहा- प्रभु एक लोक तो बचा लीजिए ।उसे समय सुदामा की कुटिया राजमहल बन गई और पत्नी सुशीला महल की रानी बन गई थी। इस अवसर पर गायक मुकेश दुबे ,तबला वादक राहुल शुक्ला, राम शुक्ला सहायक द्वारा प्रस्तुत भजन, ‘यदि नाथ का नाम है दया निधि है, तो दया भी करेंगे कभी ना कभी', काफी सराहा गया।

 कथा को व्यास पीठ से मृदुल वाणी में रसपान कराते हुए श्री कौशिक चैतन्य जी ने कहा कि- आत्मा अजर है, अविनाशी है, शरीर छूट जाता है ,लेकिन आत्मा विद्यमान रहती है। प्रारब्ध रूपी कर्म का जब तक वेग रहता है तब तक यह शरीर रहता है। यह जीवन क्षणभंगुर है । साधक को संसार रूपी निहाई पर दृष्टि नहीं रखनी चाहिए । आत्मा पर चेतना पर दृष्टि रखनी चाहिए, जीवात्मा कुछ समय के लिए एक शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है। श्री मद भागवत में अट्ठारह हजार श्लोक है, तीन सौ पैंतीस अध्याय हैं,द्वादश स्कंध हैं ।

उन्होंने कहा कि नकली बहुत दिनों तक टिकता नहीं।नकली को बहुत देर तक समाज में ख्याति नहीं मिलती। जब पोल खुलता है तो नकली का भंडा फोड़ हो जाता है, इसलिए माताओं -बहनों, नकली लोगों से सावधान रहो, धर्म के नाम पर आडंबर और चमत्कार करने वालों को पहचान लो। चमत्कार के आधार पर यदि आपने किसी को अपना आदर्श माना है तो वह गलत है ।चमत्कार की जिस दिन पोल खुलेगी उस दिन अपने को ठगे महसूस करोगे।

श्रीमद् भागवत में कथा आती है की परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। तक्षक नाम का सर्प महाराज इंद्र के सिंहासन पर लिपट गया था।आस्तिक मुनि का स्मरण कर लेने से सर्प का भय दूर हो जाता है।

 कथा को संगीत मय लहरी में रसपान कराते हुए कौशिक चैतन्य जी ने बताया कि संतों ,सद्गुरुओं का कभी परिहास मत करो ,निंदा मत करो,ऐसा करने से प्रभु के भक्त का अपमान होता है। ‘मेरा मान भले टल जाए पर भक्त का मान ना टलते देखा',  काल कभी किसी को छोड़ता नहीं है ।काल के चक्र से कोई बचा नहीं है ।पृथ्वी तीन गुणों से निर्मित है - सतोगुण रजोगुण ,तमोगुण। प्रलय चार प्रकार के होते हैं -प्राकृतिक प्रलय, आत्यंतिक प्रलय, नैमित्यिक प्रलय ,महाप्रलय। जब संपूर्ण पृथ्वी जल में विलय हो जाएगी , तब प्रयाग में बाल रूप में प्रभु प्रकट होकर श्रृष्टि का आरंभ करेंगेम ऐसी कथा सुखदेव जी महाराज ने राजा परीक्षित को सुनाई है।

उन्होंने बताया कि द्वादश स्कंध में कलयुग के घोर आचरण का वर्णन किया गया है। जिसका प्रभाव परिलक्षित हो रहा है। 'झूठे लेना झूठे देना, झूठे भोजन झूठ चबेना,।'भगवान तो प्रकट होकर अपनी लीला करते ,करवाते हैं। भगवान की देह चिदानंद है। भगवान कृष्ण ने बाणासुर का ,बलराम ने रुक्मि का वध किया। 

जरासंध ,शिशुपाल, दंतवक्र, विदूरक का उद्धार किया, पौंडक, काशीराज का उद्धार तथा युधिष्ठिर पांडवों के राजसूय यज्ञ में पादुका उठाने ,जूठे पत्तलों को उठाने का कृष्ण ने सेवा कार्य किया था ।सत्संग में की गई सेवा आपका कल्याण करती है। सेवा भावना को देखना है तो सीधे गुरुद्वारा को जाओ, जहां अमीर लोग गुरुद्वारे में पादुका की सेवा के लिए जूते चप्पलों को साफ करके लाइन से लगाने के लिए घंटों खड़े रहते हैं । गुरुद्वारे में दर्शकों के जूते चप्पल उठाकर साफ करके मस्तक से लगाए जाते हैं ,यही ईश्वर की सेवा है। सेवा सीखनी है तो लंगरों से सीखे ,जिससे आपका अहंकार समाप्त हो जाएगा और प्रभु की अनन्य कृपा आपके ऊपर वरदान बनकर बरसेगी । 

उपरोक्त कार्यक्रम को सफल बनाने में कथाव्यास के साथ आये आचार्य गण, देवेश शुक्ला, देवेश पाठक ,योगेश मिश्रा, अर्पित त्रिवेदी समेत भगवती प्रसाद सोनी, राजू सोनी ,विनय सोनी, विकास सोनी ,गोपाल सोनी ,अंबर सोनी ,दीपमाला सोनी, पुष्पा सोनी सहित सोनी परिवार व ग्रामवासी गणों की प्रमुख भूमिका रही । उक्त कथा को सुनने के लिए सुदूर ग्रामीण अंचलों समेत कई जनपदों के व्यास जी के अनुयायी एवं श्रोतागणों का प्रतिदिन तांता लगा रहा।

*उमाकांत बाजपेयी* शासकीय मान्यता प्राप्त                    पत्रकार जनपद बाराबंकी 

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