*क्रोध में हिंसा का हो जाना स्वाभाविक होता है।*

 सर्व श्री आशुतोष महाराज जी का चिंतन(अनमोल वचन) प्रस्तुतिकरण श्री आर सी सिंह जी।

                      श्री आर सी सिंह जी 

गीता में भगवान श्रीकृष्ण जी ने काम, क्रोध, लोभ को नरक के 3 दरवाजे बताया है।  हम अपने जीवन में शरीर की आवश्यकताओं से अधिक जो कुछ भी चाहते हैं, उसे आप काम ही मान कर चलें। फिर इन कामनाओं/इच्छाओं के निरन्तर बढ़ते रहने से ही लोभ यानी दूसरे नरक का दरवाजा खुल जाता है। और मन में लोभ के बने रहने से क्रोध का आना एक आम बात हो जाती है। फिर क्रोध में अक्सर मनुष्य अपने शब्दों पर नियंत्रण नहीं रख पाता, जिसके फलस्वरूप हम-आप समाज में आये दिन हिंसा देखते ही रहते है। यानी क्रोध में हिंसा का हो जाना स्वाभाविक ही होता है। इसलिए हमें आरंभ से ही भोग प्रेरित इच्छाओं से बचना ही होगा। अन्यथा एक के बाद एक नरक के दरवाजे अपने आप खुलते जाते हैं और हमें पता भी नहीं चलता। अक्सर सत्संग के अभाव में मनुष्य इतनी गहराई में जाता नहीं। इसपर हमें अपना चिन्तन करना चाहिए...। 

*ओम् श्री आशुतोषाय नम :*

"श्री रमेश जी"

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